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________________ जैन मांसाहार से सर्वथा अलिप्त इस उपयुक्त विवेचन से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि श्रमण भगवान महावीर सर्वज्ञ-सर्वदर्शी थे। उनके आचार और विचार यहाँ तक पवित्र थे कि जब वे अजीव पदार्थों का भी इस्तेमाल (उपयोग) करते थे तो इस बात की पूरी सावधानी रखते थे-"मेरे द्वारा किसी छोटे से छोटे प्राणी को भी कष्ट न पहुंचे।" इस विश्वविभूति ने जगत के प्राणियों को जिस अहिंसा के महान् पवित्र सिद्धान्त का उपदेश दिया था उसका आचरण उनके रोम-रोम में था। अर्थात् जो कुछ वे जगत के प्राणियों को आचरण करने के लिये उपदेश देते थे उसको वे स्वयं भी पालन करते थे। उनके रोम-रोम और शब्द-शब्द से विश्व के प्रत्येक प्राणी के प्रति वात्सल्य भाव प्रगट होता था। उन्होंने केवलज्ञान प्राप्त कर लेने के बाद सर्वप्रथम यही उपदेश दिया था-“मा हण-मा हण (मत मारो-मत मारो)" अर्थात् किसी भी प्राणी की हिंसा मत करो और इसी उपदेश के अनुसार ही जो उनके धर्म-मार्ग को स्वीकार करता था, उसे वे सर्वप्रथम जीव-हिंसा का त्याग रूप "प्राणातिपात विरमण वत" धारण कराते थे। फिर वह चाहे श्रमण हो अथवा श्रावक । इस का विवेचन हम पहले कर आये हैं। __ श्रमण भगवान महावीर की अहिंसा के विषय में भारत के महान् धाराशास्त्री सर अल्लाड़ी कृष्णा स्वामी अय्यर ने एक तार्किक दलील दी थी। उन्होंने कहा था कि मैं धारा शास्त्र का अभ्यासी होने से धार्मिक तत्त्वज्ञान में विशेष अध्ययन का लाभ नहीं
SR No.010084
Book TitleBhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1964
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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