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________________ ( ४ ) शाश्वत है। कार के कुःखों को जानने काले अरिहंत-भगवंतों ये संयम में उचत और अनुचत, उपस्थित और अनुपस्थित, मुनियों और गृहस्थों, रामियों और मागियों, भोगियों और योगियों को समभाव में यह उपदेश दिया है। यही एक सत्य है, यही सबारूप है और ऐसा धर्म इस निन्थप्रवचन में ही कहा है। तीर्थकर भगवन्तों ने मांस के समान अण्डे खाने का भी निषेध किया है क्योंकि यह त्रस जीव का कलेवर है। जिस प्रकार मांस मछली मदिरा आदि अभक्ष्य होने से जैनागमों में उनके भक्षण का सर्वथा निषेध है उसी प्रकार अण्डा भी सचिस (वस जीव वाला) होने से अभक्ष्य है । जनागमों में कहा है : "से बेमि, सति में तसा पाणातं जहा-अंडया, पोतबा, जराउया सया संसेयया, समुच्छिमा अभिवया, उववातिया एस संसारे ति पश्यति मस्त अधिजाणतो। (मा० अ० १ उ० ६) भगवान् फरमाते है कि इस संसार में आठ प्रकार के त्रस जीव होते हैं जैसे कि :--'अण्डज, २पोतज, जरायुज, ४ रसज, पसंस्वेब्रज, संसुर्छिन, उदमिज्जक और औपपातिक । __ इस पाक से स्पष्ट है कि कुछ त्रस जीव अण्डे से उत्पन्न होते हैं इसलिए मण्डा भी सजीव सिद्ध हो जाता है। आज के विज्ञान की यह मान्यता है कि अपडा गर्भ से निकलते समय निर्जीव होता है। मादा जब उपर बैठकर उसे सेती है तो सर्मी के द्वारा उसमें जीव उत्पन्न हो जाता है। विज्ञान की बह युक्ति उचित प्रतीत नहीं होती। मादा के अण्डे पर बैठने से और गर्मी पहुंचाने से यदि अपने में जीव उत्पन्न होता है तो एक आटे की मोली अण्डे जैसी बनाकर मावा के नीचे रखने से खूब मर्मी पहुंचाने पर उसमें से बच्चा निकलना चाहिये क्योंकि यदि सेते समय गर्षी पहुंचाने के ही अन्य में से बच्चा निकाला
SR No.010084
Book TitleBhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1964
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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