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________________ २. सत्याणुव्रत, ३. अचाणुव्रत, ४. ब्रह्मचर्याणुव्रत, ५. परिग्रहपरिमाण अणुवत । तीन गुणात-६. दिग्वत, ७. मोगोपभोगपरिमाण व्रत, ८. बनर्षदण्डत्याग बता पार शिक्षाबत-९. सामायिक व्रत, १०. देशावकाशिक व्रत, ११. पवियोषवास व्रत, १२. अतिथिसंविभाम व्रत । (घ) श्रावक-श्राविका का अहिंसाणुव्रत पहला व्रत "स्थूल प्राणातिपातविरमण व्रत" अर्थात्-जीवों की हिंसा से विरत होना। संसार में दो प्रकार के जीव हैं, स्थावर और अस । जो जीव अपनी इच्छानुसार स्थान बदलने में असमर्थ हैं वे स्थावर कहलाते हैं । पृथ्वीकाय, अप्काय (पानी), अग्निकाय, वायुकाय तथा वनस्पतिकाय-ये पाँच प्रकार के स्थावर जीव है। इन जीवों के सिर्फ़ स्पर्शेन्द्रिय होती है। अतएव इन्हें एकेन्द्रिय जीव भी कहते हैं। दुःख-सुख के प्रसंग पर जो जीव अपनी इच्छा के अनुसार एक जगह से दूसरी जगह पर आते-जाते हैं, जो चलते-फिरते और बोलते हैं, वे उस हैं । इन स जीवों में कोई दो इन्द्रियों वाले, कोई तीन इन्द्रियों वाले, कोई चार इन्द्रियों वाले, कोई पाँच इन्द्रियों वाले होते हैं। संसार के समस्त जीव अस और स्थावर विभागों मे समाविष्ट हो जाते हैं। मुनि दोनों प्रकार के जीवों की हिंसा का पूर्ण रूप से त्याग करते हैं। परन्तु गृहस्थ ऐसा नहीं कर सकते, अतएव उनके लिए स्थूल हिंसा के त्याग का विधान किया गया है। निरपराध त्रस जीवों की संकल्प पूर्वक की जाने वाली हिंसा को ही गृहस्थ त्यागता है । जैन शास्त्रों में हिंसाचार प्रकार की बतलाई गयी है १. आरम्भी हिंसा, २. उद्योगी हिंसा, ३. विरोधी हिंसा, ४. संकल्पी हिंसा। १. प्रश्नव्याकरणसूत्र आप्रवद्वार
SR No.010084
Book TitleBhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1964
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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