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________________ भारत पर चढ़ाई कर दी। हिन्दू राजाओं ने देश की स्वतन्त्रता को स्थिर रखने के लिये उसके विरुद्ध मोर्चा लगाया । परन्तु उसने अपनी फौज के श्रागे गउनों के झुण्ड खड़े कर दिये । कुटिल नदी के किनारे घमसान का युद्ध हुआ, किन्तु मालूम यह होता है कि जिम समय हिन्दू सरदार मंत्रों के कारण असमंजस में पड़े हुए मन्त्ररणा कर रहे थे उस समय मुसलमानों ने उनको चारों तरफ से घेर कर आक्रमण कर दिया जिस से हिन्दू हार गये । श्रावस्ती (जिला गौरडे के सहेट- महेट) के जैन सम्राट* सुहिल देवराय से अपना देश पराधीन होता न देखा गया वह जिन मन्दिर में गये और तीसरे तीर्थङ्कर श्री सम्भवनाथ जी की दिव्यमूर्ति के सम्मुख देश और धर्म की रक्षा के लिये प्रण किया कि वह अत्याचारियों को देश से निकाल कर ही जिनेन्द्र के दर्शन करेंगे। उनकी प्रतिज्ञा को सभी सैनिकों ने दुहराया । 'महावीर की जय' घोषणा के साथ उन्होंने दूर से ही गउन के झुण्ड पर तीर चला कर उनको तितर-बितर कर दिया" । मुसलमानों की सेना में अव्यवस्था फैल गई। कई दिनों तक घोर युद्ध हुआ। मुसलमानों के बहुत से योद्धा मारे गये । स्वयं सातार मसूद भी इस युद्ध में काम आया। जैनवीर सुहिलदेव का प्रत पूरा हुआ। उन्होंने भारत मां की पवित्र भूमि का स्वाधीन ध्वज ऊँवा रक्खा। मुल्ला मुहम्मद गजनबी नाम के लेखक ने जो सालार मसूद के साथ था 'तवारीखे मुहम्मदी' नाम की एक पुस्तक लिखी थी, जिसके आधार से जहांगीर के शासन काल में अव्दुल १०३. श्रावस्ती और उसके नरेश सुहिलदेवराय (वटै चैन मिशन) पृ० ६०-६५ । ४. Smith : Journal of Royal Assistic Society (1900) P. 1. ५. Honey: Journal of the Asciatic Society, Bangal (1898) P. 84 ६- ६. श्रावस्ती और उसके नरेश सुहिलदेव पृ० ६२ . ४२८]
SR No.010083
Book TitleBhagwan Mahavir Prati Shraddhanjaliya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mitramandal Dharmpur
PublisherJain Mitra Mandal
Publication Year1955
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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