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________________ साम्यवाद Trees give furits, plants flowers, rivers water to anyone wether aman, beast or bird. They do not enjoy themselves, but for the benifit of others. Man is the bi hest creatute, his serviees to others must be with heart.love, without any reg rd of revenge, gain or reputation in the same spirit as mother's to her child. '_ren. -Jainism A Key to True Happiness, P. 116. जैनधर्म का तो एक-एक अङ्ग साम्यवाद से भरपूर है। हर प्रकार को शङ्का तथा भय को नष्ट करके दूसरों की सेवा करना 'निशंकित' नाम का पहला सम्यक्त्व अङ्ग है । संसारी भोगों की इच्छानरखते हुए केवल मनुष्यों से ही नहीं बल्कि पशु पक्षी तक को अपने समान जान कर जग के सारे प्राणियों से बांछारहित प्रेम करना 'निःकांक्षित' नाम का दूसरा अङ्ग है । अधिक से अधिक धन, शक्ति और शान होने पर भी दुखी दरिद्री गलीच तक से भी घृणा न करना, 'निविचिकित्सा' नाम का तीसरा अङ्ग है। किसी के भय या लालसा से भी लोकमूढ़ता में न बह कर अपने कर्तव्य से न डिगना 'अमूदृष्टि' नाम का चौथा श्रङ्ग है । अपने गुणों और दूसरों के दोषों को छिपाना 'उपगूहन' नाम का पाँचवा अङ्ग है। ज्ञान, श्रद्धान तथा चरित्र से डिगने वालों को भी छाती से लगा कर फिर धर्म में स्थिर करना 'स्थितिकरण' नाम का छठा अङ्ग है । महापुरुषों और धर्मात्माओं से ऐसा गादा अनुराग रखना जैसा गाय अपने बछड़े से करती है और विनयपूर्वक उनकी सेवा भक्ति करना 'वात्सल्य' नाम का सातव अङ्ग है। तन, मन, धन से धर्म प्रभावना में उत्साहपूर्वक भाग लेना 'प्रभावना' नाम का पाठयां अङ्ग है। जो मन, वचन और काय से इन आठों अङ्गों का पालन करते हैं, वही सम्यग्दृष्टि जैनी और स्यावादी हैं। १. आठों भाों को विस्तार रूप से जानने के लिये प्रावक-धर्म-संग्रह, पृ० ४३-६४ । ३६२]
SR No.010083
Book TitleBhagwan Mahavir Prati Shraddhanjaliya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mitramandal Dharmpur
PublisherJain Mitra Mandal
Publication Year1955
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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