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________________ कह ग्राम में दिक्षा ५-६-७ भगवान महावीर द्वारा कंडग्राम में दीक्षाएं भगवान महावीर के केवलज्ञान प्राप्ति के बाद क्रमशः कंडग्राम की तीन पर्वतघाटियों पर दीक्षाएं दीं। (१) अपने ब्राह्मण पिता ऋषभदत्त तथा वाह्मणी माता देवानन्दा को एक पर्वतघाटी पर दीक्षाएं देकर अपने शिप्य वनाये। (२) दूसरी बार अपने जमाता जमाली को दूसरी पर्वतघाटी पर ५०० गजपतों के माथ दीक्षाएं देकर अपने शिष्य बनाये और (३) तीसरी वार तीसरी पर्वतघाटी पर अपनी पत्री प्रियदर्शना को १००० क्षत्रियाणियों के माथ दीक्षाएं देकर अपनी शिप्याएं बनायीं। इन तीनों पहाड़ियों के नाम आज भी चक्कपाणि प्रसिद्ध हैं। जिसका अर्थ पाणी+चक्क-णाणी अर्धमागधी भाषा का शब्द है। जिसका अर्थ 'जानी है। यानी केवलज्ञानी (तीर्थंकर महावीर) ने, चक्क भी अर्धमागधी भाषा का शब्द है जिम का अर्थ 'चक्र' होता है यानी धर्मप्रकाशकचक्र अथांत केवलज्ञानी तीर्थकर महावीर ने इन नीन पर्वतघाटियों पर क्रमशः तीन बार पधार और धर्मप्रकाशक चक्रम्थल (ममवसरणा) में दीक्षाए देकर धमनीथं म वद्धि की। नीन पहाडियों के नाम चक्क-णि होने में स्पष्ट हो जाना है कि (१) ब्राह्मण माता-पिता. (२) जमाली आदिव (३) प्रियदर्शना आदि को भगवान ने अलग-अलग समवसरणो मे दीक्षाए दी। अन भगवान महावीर तीन बार कइपग्नगर में पधारे। इमम यह भी स्पष्ट है कि ब्राह्मणकंड और क्षत्रियकष्ट (कंडपग्नगर) बहत बई नगर थे। जो (१+१+ • +3-७) दो किन्दआनी और तीन चक्रणणी जैसे कि मान पहाइ-पहाड़िया म घिरे हा थे। एक मक्क यानी, एक दिक्कगनी यही गजा सिद्धाथ की गजधानी थी। इन मानों के नामकरण भगवान महावीर की जीवन-चयां के आज भी प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। स्थानीय आवाल-बद्ध जनता आज भी इन पवनघाटियों को इन्हीं नामों में पहचानती है। परन्त कालप्रभाव में इन के नाम पड़ने का कारण भल चकं हैं। ये मव प्रत्यक्ष प्रमाण सिद्ध करता है कि भगवान महावीर का जन्मस्थान त्रियकंड यही था। वैशाली में अथवा कडलपर में एक भी पहाड नहीं है। इस क्षेत्र केविषय में हम आगे सब विस्तार से विश्लपण कंग्गे। पहले हम दिगम्बर संप्रदाय तथा आधुनिक वैशाली शोधकर्ताओं की भगवान महावीर के जन्मस्थान की मान्यताओं पर विचार करेंगे। १ हम लिख आये हैं कि इनकी प्राचीन मान्यता मगध जनपद अन्तरगत नालदा में दो मील की दर्ग पर कडलपर (वडगांव ) को भगवान महावीर के.
SR No.010082
Book TitleBhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1989
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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