________________
(VII)
प्रस्तत पस्तक का ऐतिहासिक महत्व है। भारतीय इतिहास अधिकतर विदेशियों द्वारा लिखा गया है। भारतीय इतिहासकारों ने उसका अन्धानुसरण किया है। इस दिशा में पं० जयचन्द्र विद्यालंकार ने भारतीय दृष्टि से इतिहास लिखा है। पुरातत्व से भी इतिहास लेखन में अच्छी सहायता मिलती, पुरातत्व की खुदाई से कभी कभी प्रचलित इतिहास का रूप और उसकी मान्यताएं बदल जाती हैं। श्री दुग्गड़ जी ने प्रस्तुत पुस्तक में इस ओर भी संकेत किया है। इतिहास का महत्व समझने के लिए उनका उद्धृतनिम्नलिखित श्लोक कितना महत्वपूर्ण है।
स्व जाति पूर्वज़ानां यो न जानाति संभवम्
स भवेत् पुंश्चलीपत्र सदृशः पितृवेदकः पुस्तक के परिशिष्ट रूप में शास्त्री जी ने जैन धर्मके संबंध में अच्छी जानकारी दी है। जिस प्रकार आचार्य विजयानन्द सूरि (आत्माराम जी) ने अपने कथन के समर्थन में वेदार्य ग्रंथों का उद्धरण दिया है, वैसे ही शास्त्री जी ने अपने समर्थन में ऋग्वेद अथर्ववेद आदि वैदिक साहित्य से लेकर विभिन्न पुराणों के स्थान-स्थान पर उद्धरण दिए हैं।
इस प्रकार शोधग्रंथ के लिए जिन जिन श्रोतों का ज्ञान अपेक्षित है, उन सबका उपयोग प्रस्तुत ग्रंथ में किया गया है। इस पुस्तक को लिखकर पंडित हीगलाल शास्त्री दग्गड़ ने जैन-जगत पर महान उपकार किया है, जैनेतरों के लिए भी इतिहास और शोध की दृष्टि से यह ग्रंथ उपादेय है। किन्तु मुख्य रूप से जिस समाज के हित के लिए यह पम्तक लिखी गई है, वह व्यापारी समाज है, उस समाज में जो ज्ञान है वह आर्धानक है जिसे भारतीय दृष्टि से ज्ञान कहने में संकोच होता है।
फिर भी यदि उस समाज को इस ग्रंथ से प्रेरणा मिली, कोई शोधछात्र उत्पन्न हुआ, तो शास्त्री जी का श्रम सफल समझा जायेगा। निःसन्देह श्री दग्गड जी यह ग्रंथ लिखकर अपने अर्द्धशतक ग्रथों में एक और संख्या बढ़ाकर जिज्ञासुओं का महान उपकार किया है। २/८८ रूपनगर, दिल्ली
विद्वज्जन कंकर पौष पूर्णिमा सं० २०४५
अवधनारायणधर द्विवेदी