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________________ अत्रियकंड महल्ले में थे। मध्य में बहुशालचैत्य था। इन दोनों मुहल्लों में उत्तर और दक्षिण ऐसे दो भाग थे। दक्षिण ब्राह्मणकुंड में ब्राह्मणों के अधिक घर थे जबकि उत्तर क्षत्रियकुंड में क्षत्रियों के अधिक घरं थे। सिद्धार्थ राजा उत्तर क्षत्रियकंड का नायक था। ज्ञात-क्षत्रियों का स्वामी था और वह जैन था। (श्रमण भगवान महावीर पृ. ५) अतः पन्यास कल्याणविजय जी ऐसा मानते हैं कि १. विदेह में वैशाली के निकट एक मोहल्ला ही क्षत्रियकुंड भगवान महावीर का जन्मस्थान है। २. लच्छुआड़ के निकट क्षत्रियकंड में भगवान ने कोई चौमासा एवं विहार नहीं किया। इसलिये यह भगवान का जन्मस्थान नहीं हो सकता। ३. श्वेताम्बी से राजगृही जाते हुए भगवान को गंगानदी पार करनी पड़ी थी इसलिए वैशाली का एक मोहल्ला ही सच्चा क्षत्रियकुंड है। ४. आचार्य विजयेन्द्र सूरि वैशाली नामक पुस्तक में लिखते हैं १. भगवान महावीर वैशालिक कहलाते हैं। क्षत्रियकुंड भी वैशाली के पास था। इसलिये हम वैशाली संबन्धी विचार करते हैं। (पृ. १) यह आर्य देश था। वृहत्कल्पसत्र आदि में आर्य देश २५४ कहे हैं। इनमें भी अंग, मगध, दक्षिण में वत्स (कौशाम्बी), पश्चिम में स्तून (कुरुक्षेत्र) और उत्तर में कुणाल की सीमा तक विद्यमान देश और उनका मध्यभाग ही मुनियों के विहार के लिये आर्यभूमि है। इस प्रदेश को बौद्ध १६ जनपद और मनुजी मध्यभारत उल्लेख करते हैं। २. विदेह यह आर्यदेशों में से एक है। इसकी राजधानी मिथिला थी। विक्रम की १५वीं शती में इस के क्रमशः तीरभक्ति और जमईनगर ऐसे नाम थे। 15 बौद्धग्रंथों के अनुसार मिथिला विदेह की राजधानी थी जो आठ प्रमुख संघों में से एक थी।6 वैशाली आज विद्यमान नहीं। इस जगह आज वसाढ़, बनिया, कामनछपरागाच्छी, वसुकंड और कोलुआ गांव बसे हुए हैं। जो वैशाली, वाणिज्य, कुमार, कुंडपुर और कोल्लाग की स्मृति में हों ऐसा लगता है। 'जात' यह छह जातियों में से एक है। राहुल साकृत्याय कहता है कि यह जाति आज वसाढ़ में जथारिया के नाम से प्रसिद्ध है। भगवान महावीरशात जाति
SR No.010082
Book TitleBhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1989
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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