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________________ ३० महावीर और ज्योतिष वि.पू. ५४२ (ई. पू. ५९९) में ग्रीष्म ऋतु के चैत्रमास की शुक्ला १३ के दिन पूरे नौ महीने सात दिन बारह घंटों के पूर्ण होने पर जब कि नक्षत्र अपनी उच्च स्थितियों को प्राप्त थे। प्रथम चन्द्र योग से दिशाओं के समूह जब निर्मल थे। अंधकार हीन और ज्योतिष विशुद्ध काल था, सारे शकुन शुभ थे। अनुकूल दक्षिण पवन भूमि को स्पर्श कर रहा था। भूमि धान्य से परिपूर्ण थी। सारे प्राणी और मनुष्य प्रमुदित और क्रीड़ा लीन थे। उस समय उत्तरा फाल्गनी नक्षत्र के चौथे चरण में आधी रात में मगध जनपद में क्षत्रियकुंडपुर में ईक्ष्वाकु कुलभूषण रघुकुल नन्दन, सूर्यवंशमणि, जातृवंश-दीपक, सिद्धार्थ के कुमार, प्रियकारिणी त्रिशला देवी नन्दन, नन्दीवर्धनानुज, सुदर्शना-सहोदर, क्षत्रियकंड के राजकुमार के रूप में सन्मति वर्धमान-महावीर माता त्रिशाला देवी की दक्षिण कुक्षी से प्रसूत हुए। उस समय सूर्य की महादशा एवं शनि की अर्न्तदशा, बुद्ध का प्रत्यन्तर चल रहा था। उन के जन्म काल में उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र का बड़ा महत्व है। आपका गर्भावतरण, गर्भ-प्रत्यावर्तन, जन्म, गृहत्याग (दीक्षा) केवलज्ञान प्राप्ति नामक पांचों घटनाएं उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में ही संगठित हुई थीं। इस जातक का जन्म क्योंकि शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को है, इसलिये जातक का गेहआं (स्वर्ण जैसा पीला) रंग होना चाहिए। तीर्थकर वर्धमान महावीर की जन्मकुंडली. १२K में १० के. बु. १ सू० २४० रा०४ ० ७ श० > चैत्र शुक्ला प्रयोदशी ई. पू. ५९९ वि. पू. ५४२ नव ग्रह अनुसार विवेचन - १. मंगल- क्योंकि उच्च का मकर राशि का है इसलिये जातक ख्यातिप्राप्त, पराक्रमी, नेता, ऐश्वर्यशाली एवं महत्वाकांक्षी होता है। साथ ही राजसी चिन्हों यथा प्रलम्बबाहु, सढ़ स्कन्ध द्वय, विशाल वक्ष स्थल, उन्नत ललाट तथा कान्तिमय मुखमंडल से युक्त होता है।
SR No.010082
Book TitleBhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1989
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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