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________________ iixxiil) सभी धर्मों के अपने मान्य महापुरुषों के जन्मस्थान, निर्वाण स्थान अथवा उनके जीवनके प्रसंगों की विशिष्ट तिषियों को बहुत महत्व दिया गया है एवं उन स्थानोंको भावोंकी शद्धि और अभिवृद्धि का कारण मानते हुए वहां के कण-कण को पवित्र माना है। अतः उन स्थानों की यात्रा सहस्रों वर्षों से लोग करते आए हैं और वहां से प्रेरणा पाकर अपनी आत्मा को पवित्र और धन्य मानते हैं। महान-परुषों के जीवनसंबंधी जन्म, निर्वाण आदि तिथियों को भी विशेष श्रद्धा-भक्ति सहित व्रत-जाप-पूजा-आगधना आदि की जाती है। जैनधर्म के तीर्थंकरों के पांचों कल्याणकों की भमिको तीथं मानने की प्राचीन परंपरा हैं। आगमों में सब से प्राचीन आगम आचागग की नियुक्ति में इसका उल्लेख पाया जाता है। च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान और निर्वाण ये पांचो कल्याणक किन-किन तीर्थंकरों के कहां-कहां हुए हैं और किम-किम तिथि, नक्षत्र में ही हैं इसका भी प्राचीन आगमों में विवरण मिलता है। कल्याणक तिथियो की आगधना विशेष धमांनुष्ठानों द्वारा की जाती है तथा कल्याणक मियों की यात्रा करने में आज भी वहत उत्साह, श्रद्धा और भक्तिभाव नजर आता है। कछ अर्वाचीन विदेशी और भारतीय विद्वानों की वैशाली को भगवान महावीर की जन्ममि की भ्रात मान्यता में प्रभावित होकर बिहार सरकार ने इसी आधार पर बिहारप्रदेश के गगानदी के उत्तर मुजफ्फरपुर जिले के अन्तर्गत वसाढ़ नामक ग्राम को प्राचीन वैशाली मानकर उम के समीप ही वासकंड नामक ग्राम को प्राचीन कंडपर मान लिया है। वहां एक प्राचीन कंड के भी चिन्ह पाये गये हैं वहीं भगवान महावीर का जन्मस्थान क्षत्रियकुड मानकर उमी के समीप अहल्य नामक भूमिखंड को अपने अधिकार में लेकर उसपर घेरा बना दिया है और वहां पर एक कमलाकार वेदिका बनाकर एक मगमरमर का शिलापट्ट स्थापित कर उस पर अर्द्धमागधी भाषा में आठ गाथाओं का लेख हिन्दी अनुवाद सहित अकित कर दिया गया है। जिस में वर्णन है कि "यह स्थल जहां भगवान महावीर का जन्म हुआ था और जहां वे अपने तीसवर्ष के कमारकाल को पूरा कर जित हुए थे।"शिलालेख में यह भी उल्लेख है कि "भगवान के जन्म मे २५५५ वर्ष व्यतीत होने पर विक्रम संवत २०१२ वर्ष में भारत के राष्ट्रपति श्री गजेन्द्रप्रमाद ने यहां आकर इस स्थापना का लाभ उठाया है। इस महावीरस्मारक के ममीप इमकी तटवर्ती भमि पर शातिप्रसाद साह दिगम्बरी के दान से एक भव्यभवन का निर्माण भी करा दिया और भवन में बिहार राज्यशासन द्वारा 'प्राकृत जैनशोध संस्थान जो १९५६ ईमवी में दिगम्बरी डा० हीरालाल जैन M. A. D. Litt के निर्देशत्व में मुजफ्फरपुर में प्रारंभ किया गया था। इन्हीं के द्वारा वैशाली महावीरस्मारक स्थापित कगया गया और शोधसंस्थान भवन का निर्माणकार्य भी प्रारंभ हुआ।" इस शोधसंस्थान में वहां उपस्थित श्वेतांबर जैनसमाज ने भी दिल खोलकर दान दिया था। इसी शांतिप्रसाद साहू दिगम्बरी ने यहां एक दिगम्बर मंदिर की स्थापना भी की। पश्चात् स्कूलों और महाविद्यालयों (कालेजों) की निम्न कक्षाओं से ले कर उच्चतम कक्षाओं की पाठ्य-पुस्तकों में भी भगवान महावीर की वैशाली जन्मस्थान की मान्यता को प्रकाशित कर दिया गया। मात्र इतना ही नहीं अमरीकन तथा बरतानिया के कोषकारों ने भी अपने कोषों में इस प्रांत-मान्यता को प्रकाशित कर दिया।
SR No.010082
Book TitleBhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1989
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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