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________________ (xx) कोरा कागज (BLANK PAPER) मैंने विवश होकर गणि श्री कलाप्रभसागर जी को पत्र लिखा- बन्दना । पत्र मिलानिमंत्रण केलिए साधुवाद। आपने विद्वद्सम्मेलन में शामिल होने तथा शोधपत्र लिख भेजने को आमंत्रित किया है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि मैं इस विषय से एकदम अनभिज्ञ हूं। कभी जाना सोचा ही नहीं है कि जन्मस्थान के विषय में क्या मत-मतान्तर है। इसकी मुझे कोई जानकारी भी नहीं है। इसलिए इस विषय पर कुछ लिखना कैसे संभव हो सकता है। अतः इस विषय में मैं एकदम कोरा कागज (Blank paper) हूं इसलिए मैं इस सम्मेलन में सम्मिलित होने में अपने आपको एकदम असमर्थ पाता हूं। अतः क्षमाप्रार्थी हूं। आपका कृपाकांक्षी हीरालाल दुग्गड़ श्री पंगास जी का उत्तर पत्र आपका मिला। समाचार जाने । निवेदन है कि जैसे भी बने आप सम्मेलन में अवश्य पधारें, आपके पधारने से सम्मेलन को शक्ति और आपको भी जानकारी मिलेगी। ( पत्र का सार) मेरा निर्णय पंयास जी का पत्र मिलने पर मैंने सोचा कि यद्यपि मैं इस विषय से अनभिज्ञ हूं और मेरी यह नीति भी नहीं है कि मैं किसी के विचारों का अन्धानुकरण करूं अथवा कोई अपने विचारों को मुझ पर थोप सके। आजतक मैंने ५१ पुस्तकें लिखी हैं। जो कुछ भी लिखा है अपने स्वतंत्र विचारों में ही लिखा है। आजतक अपने लेखन के आलोचकों ने भी मुझ पर अपना कोई प्रभाव नहीं डाला। मुझे जो ठीक सत्य प्रतीत होता है वही लिखता हूं। तथापि मुझे वहां जाने में लाभ ही होगा । १. विद्वानों से परिचय होगा और उनके इस विषय में विचारों को सुनने का लाभ होगा २. तीर्थाधिराज सम्मेतशिखर जी यात्रा का लाभ मिलेगा। ३. आचार्य श्री तथा श्रमण-श्रमणियों के दर्शनों तथा परिचय का भी सौभाग्य प्राप्त होगा। मैंने ऐसा सोचकर सम्मेलन में सम्मिलित होने केलिए पंयास जी को स्वीकृतिपत्र लिख दिया। इतिहासज्ञ विद्वत सम्मेलन सम्मेलन के प्रारंभ होते ही मैं मधुबन पहुंच गया और सम्मेलन में सम्मिलित हो गया। इस सम्मेलन में बिहारक्षेत्र के उच्चकोटि के जैनेतर इतिहासज्ञ विद्वान ही अधिक संख्या में थे। जैनविद्वान तो मात्र तीन ही थे । १. श्री भँवरलाल जी नाहटा कलकत्ता २. श्री रमनभाई र्जी: (गुजराती) बंबई ३. श्री हीरालाल दुग्गड़ मैं स्वयं दिल्ली निवासी । (यह तीनों) जैन श्वेताम्बर मन्दिरमार्गी आम्नाय के थे। सब विद्वानों ने अपने-अपने शोधपत्र पढ़े। मात्र मैं ही एक कोरा कागज था। सम्मेलन ने सर्वसम्मति से निर्णय किया किसी जनपद में लच्छु के निकट जो अत्रियकुंड है, वही भगवान महावीर का वास्तविक जन्मस्थान है।
SR No.010082
Book TitleBhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1989
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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