SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 187
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५२ न ही प्रजा का उत्पीड़न था। सब निर्भय होकर सुख और शांति से निवास करते थे। यही कारण था कि राज्य शांत-धार्मिक-धन-धान्य से समृद्ध था। ___ अन्त में राजा उदायन और रानी प्रभावती ने राजपाट गृहस्थ परिवार सर्व परिग्रह का त्याग कर भगवान महावीर के शासन में निग्रंथ श्रमण-श्रमणी की दीक्षाएं लेकर निरातिचार-चरित्र पालकर आयु समाप्त होने पर प्रभावती ने देवगति प्राप्त की और (राजा उदायन) राजर्षि केवलज्ञान, केवलदर्शन प्राप्त कर सर्वज्ञ सर्वदर्शी बने और अन्त में सर्वकर्म क्षय करके निर्वाण प्राप्त किया।12 इसी प्रकार चेटक के बहनोई सिद्धार्थ तथा छहों ही दामाद सभी बड़े समृद्धिशाली राज्यों के स्वामी बने। फुटनोट्स:१. ऋग्वेद १०, १०२, ६,१३६, २, ३३ । भागवत ५, ६ विष्णुपुराण ३.१८ आदि। इनमें ऋषभ, केशी, वातरशना मुनियों के उल्लेख ध्यान देने योग्य हैं। विशेष जानकारी के लिये देखेंहमारा मध्याऐशिया और पंजाब में जैनधर्म-ग्रंथ अध्याय १ पृष्ठ १ से २१ २.जैनागम संमवायांग पृष्ठ २४६। और कल्पसूत्र। आ. हेमचंद्र कृत त्रि.श. पु. चरित्र आदि। दिगम्बर-तिमोयपण्णत्तिमताधिकार ४। जिनसेन कृत आदिपुराण, गुणभद्र कृत उत्तरपुराण, पुष्पदंत कृत महापुराण (अपभ्रशं) ३. भागवतपुराण ४, ५, ९) ११, २। विष्णुपुराण २३, १, ३१ वायुपुराण ३३, ५२। अग्निपुराण १,७,११-१२. ब्रह्मांड पुराण ५, ६२, लिंग पुराण ४७,२२ स्कन्द पुराण कौमार खड ३७,२७, मार्कन्डे पुराण ५०।४१ इन में स्पष्ट उल्लेख है कि ऋषभ के पुत्र भरत के नाम से इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा। ४. कल्पसूत्र एवं आचार्य हेमचन्द्र कृत त्रि. श. पुरुषचरित्र ५. कल्पसूत्र। ६. देखें हमारा लिखा- मध्यएशिया और पंजाब में जैनधर्म ऐतिहासिक ग्रंथ में विस्तृत वर्णन। ७. दिगम्बरपंथी महावीर का विवाह नहीं मानते। इस प्रांत मान्यता के स्पष्टीकरण केलिये. मेरी पुस्तक-राजकुमार वर्धमान महावीर विवाहित थे- अवश्य पढ़ें। ८. दिगम्बर पं. फूलचंद सिद्धांतशास्त्री कृतं जाति, वर्ण, और धर्म नामक पुस्तक पृ. २८० भारतीय मानपीठ द्वारा प्रकाशित ९. डा. हीरालाल जैनं M.A.D.Litt कृत महावीर पुस्तक। १०. डा. हीरालाल M. A. D. Liu कृत पुस्तक महावीर। ११. भगवान महावीर के ६०९ साल बाद दिगम्बर संप्रदाय की स्थापना हुई। १२. ग. भूपसिंह राजपूत-हांती (हरियाणा) श्रमण हिन्दी मासिक पत्रिका वर्ष २२ बंक १२ पृ. ५ से ११
SR No.010082
Book TitleBhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1989
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy