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________________ (XV) विजय वल्लभ स्मारक दिल्ली Aam म . Are "विजय वल्लभ स्मारक' दिल्ली से पंजाब जाने वाले राष्ट्रीय मार्ग नं. 1 के 20 ३ कि. मी. पर, गगनचुम्बी, अद्वितीय एव विशाल भवन के रूप में अब स्पष्ट दृष्टिगोचर होने लगा है। यगद्रष्टा जैनाचार्य श्रीमविजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज का, जिनके समाज के ऊपर अनन्त उपकार है, पण्य स्मृति को अमर करने के लिए उनकी यशोगाथानरूपकरोडो रुपयों की लागत से यह स्मारक पत्थर द्वारा निर्मित हुआ है। इसकी योजना विविधलक्षी है और इसके माध्यम से धर्म के सातो क्षेत्रों का सिंचन होगा। स्मारक-निर्माण के लिए एक अखिल भारतीय ट्रस्ट की स्थापना श्री आत्मवल्लभ जैन स्मारकशिक्षण निधि के नाम से भगवान महावीर के 25 सौवें निवाण वर्ष की पाबन बेला मे दिनाक 126.74 को हई थी। देश के प्रमख जैन इसके टस्टी है। श्री आत्म-वल्लभ समुद्र पट्ट-परम्परा के वर्तमान गच्छाधिपति जैन-दिवाकर परमार-क्षत्रियोडारक, चारित्र-चडामणि आचार्य विजयेन्द्र दिन्न सूरीश्वर जी महाराज की आज्ञानवर्तिनी साध्वी जैन-भारती महतरा मृगवती श्री जी महाराज इस योजना की प्रणेता थी। आचार्य श्रीमविजय समुद्र सूरि जी महाराज से उन्होने स्मारक-निर्माण के आदेश प्राप्त किये और वर्तमान आचार्य श्री जी का आर्शीवाद एवं मार्गदर्शन उन्हें मिला था। महत्तरा जी ने अपना पूर्ण जीवन इसमे लगा दिया था। उनकी सद-प्रेरणा से समाज ने महान आर्थिक योगदान दिया। पज्य महत्तरा जी ने भी अपने हाथ से जिस योजना की नीव डाली थी, उसका अधिकाश भाग अपने तप, त्याग और कर्मठता के बल पर अपने जीवन काल में ही सम्पन्न कर लिया था। समाज उनका ऋणी रहेगा। -- A MA
SR No.010082
Book TitleBhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1989
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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