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________________ १४३ त्रियकंड मगधनिवासी थे और जैनधर्म के अनुयायी थे। पूर्व मध्यकाल में जैनों को मगध छोड़ना पड़ा। किन्तु जैनों ने अपनी पुण्यभूमि मगध को कभी विस्मृत नहीं किया। इसका चप्पा-चप्पा जैनों के सांस्कृतिक इतिहास से रंगा है। राजगृही पंचपहाड़ी, पावापरी, बड़गांव, क्षत्रियकंड, ब्राह्मणकंड (कंडपर), काकन्दी. गया, गोरथगिरि (चराचर पर्वत), जंभीयग्राम, भद्दीय, गुणावां, नवादा, विहारशरीफ सम्मेतशिखर पाटलिपुत्र (पटना) महसारनगर, पचारपहाड़, श्रावकपर्वत आदि अनेकों स्थानों में प्राचीन एवं मध्यकालीन जैन पुरातत्व अवशेष, जिनमंदिर, जिनतीर्थ, जिनप्रतिमाएं, पवित्रस्मारक आदि प्राप्त हैं। इनमें अधिकांश स्थल तीर्थक्षेत्रों के रूप में पज्यनीय हैं। भारत के कोने कोने से प्रतिवर्ष लाखों जैनयात्री चिरकाल से मगध के इन तीर्थस्थानों की यात्रा करने आते रहते हैं। संक्षेप में मगधदेश का जैनधर्म और जैनसंस्कृति के साथ अत्यन्त प्राचीन काल से ही अट घनिष्ठ संबंध है। एक को प्रथक करके दूसरे के विषय में सोचा समझा ही नहीं जा सकता। मगध का अस्तित्व और उसका इतिहास, उसकी मगधसंस्कृति, श्रमणपरंपरा, अर्द्धमागधी प्राकृतआगम, साहित्यपंचागी, जैनधर्म के स्थापत्य और इतिहास के अभिन्न अंग हैं। इन दोनों के अभ्युदय और उत्थान एवं पतन ही अन्योन्याश्रित रहे हैं। मगध ने यदि जैनधर्म को पोषण दिया है और उसका वर्तमान इतिहास दिया है तो जैनधर्म ने भी मगध को सर्वतोमुखी उत्कर्ष साधन दिया है और उसे विश्वविश्रुत बना दिया है। परिशिष्ट-२ वैशाली मंणतंत्र आज से लगभग २६ सौ वर्ष पहले वैशालीनगर सभी प्रकार की सुविधाओं से सम्पन्न था जो नौ मील की परिधि में बसा हुआ था। सुन्दर चैत्यों, तालों तथा बाग-बगीचों से परिपूर्ण था। नगर की बहुत ही सुव्यवस्थित ढंग से तीन भागों में रचना की गई थी। पहले भाग में स्वर्णकलशों से युक्त सात हजार घर थे। दूसरे भाग में चांदी के कलशों से चौदह हजार घर थे। तीसरे भाग में तांबे के कलशों से यक्त २१ हजार घर थे। इन तीनों भागों में क्रमशः उत्तम, मध्यम और निम्न वर्ग के लोग अपनी स्थिति के अनुसार रहते थे उस समय वैशाली की जनसंख्या १ लाख ६४ हजार थी। (प्रति घर में लगभग चार जनसंख्या की
SR No.010082
Book TitleBhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1989
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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