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________________ 'क्षत्रियकंड ४. हम लिख आयें हैं कि यहां आनेवाले जैनयात्रियों की सुविधा केलिये मुर्शिदाबाद (बंगाल) के दूगड़ मोत्रीय बीसा ओसवाल श्वेतांबर जैन रायधनपंत सिंह बहादुर ने लच्छुआड़ में ई. सं. १८७४ में एक विशाल धर्मशाला और भगवान महावीर के जैनमदिर का निर्माण कराया था। जहां आजकल भी भारत के कोने-कोने से आनेवाले तीर्थयात्री यहां आकर ठहरते हैं और पहाड़ियों से घिरे हुए उस जन्मस्थान तथा इस क्षेत्र में विद्यमान अन्य तीर्थों की यात्रा करके अपने आप को धन्य मानते हैं और जीवन सफल करते हैं। ५:भगवान महावीर के दीक्षा लेने के बाद इस क्षेत्र में उन के विहार में आये नगरों, गांवों, सन्निवेशों के नामों में जो कुछ परिवर्तन पाया जाता है, ऐसा होना स्वाभाविक है। क्योंकि ढाई हजार वर्षों में कई उतार-चढ़ाव आये। इम केलिये सिकंदरा (मुंगेर) निवासी डा भगवानदास केसरी लिखते हैं कि इन नगगें, ग्रामों में क्यों परिवर्तन आये? इसका एक कारण यह भी है कि ई.सं.१५४० में इसी स्थान पर एवं इस के इलाके में शेरशाह और हुमायूं की सेना में घमामान युद्ध हुआ। हुमायूं अपनी विजय के बाद उस ने जहां जहां वैभवपूर्ण नगर पाया उसकी संस्कृति एवं कला का नाश किया तथा इस्लामी संस्कृति और कला में ढाल दिया। माहणकंडग्गाम की एक मस्जिद में सन हिजरी ५७५ के फारमी में लिखे तीन शिलालेख मिले हैं। उस समय भारत में मसलमानों का राज्य स्थापित नहीं हुआ था। यह काल हर्षवर्धन का था। उस समय भारत में जो भी ममलमान आए वे लुटेरों की हैसियत से आये। संयोग ऐसा रहा कि एक ही रेंज में जैनतीथं रहने के कारण मुहम्मदगोरी ने उन्हें खूब लूटा और नाश किया। हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद का युग दृढ़ता से विघटनशील प्रवृत्तियों का था।' शोध-कर्ता का दायित्व शोधकर्ता की दृष्टि पूर्वाग्रहक, दाग्रह, दृष्टिगग और पक्षपान-गहन उदार होनी चाहिए। इसी बल को लेकर वह सत्य का पा सकता है। इसी बात को लक्ष्य में रखकर भगवान महावीर के जन्मस्थान का विवादास्पद विषय पर हमने विचारणा की है। इस विषय को साहित्य, इतिहास, भनन्व विधा, भगील आदि आठ दृष्टिकोणों की कसौटी पर परख कर लिया है। भगवान महावीर का जन्मस्थान बिहार (मगध बनपर) में जमुई अनुमंडल के लच्छमाड़ गांव के निकट क्षत्रियकुंड ही अपवान महावीर का वास्तविक जन्मस्थान है। वैशाली और कंडलपुर इस कसौटी पर खरे नहीं उतरे। अनः यह दोनों अम्बान है।
SR No.010082
Book TitleBhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1989
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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