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________________ ११८ सब दृष्टियों से क्षत्रियकड जन्मस्थान १०. हम लिख आये है कि भगवान महावीर के उपदेश की भाषा अर्धमागधी थी जो उस समय मगध तथा उस क्षेत्र के आस-पास की मातृभाषा थी। उनके उपदेशों का संग्रह रूप जैनागम भी इसी भाषा 7 में विद्यमान हैं। यदि भगवान का जन्म वैशाली में होता तो उनकी भाषा अर्द्धमागधी न होकर कोई दूसरी भाषा होती। पर ऐसा नहीं हुआ। हम इस का वर्णन पहले विस्तार से कर आए हैं। ११. उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट होता है कि भगवान की भाषा अर्द्धमागधी अंग, मगध, बंग- जनपदों में होने से उनका जन्मस्थान कुंडपुर क्षत्रियकुंडनगर मगध जनपद में ही था। यदि भगवान का जन्म वैशाली में हुआ होता गृहस्थावस्था के तीस वर्ष वहां व्यतीत किये होते तो उनकी भाषा अद्धमागधी न होकर कोई दूसरी भाषा होती । अतः मगध जनपद में ही लच्छुआड़ के निकट वाला कुंडपुर ही जन्मस्थान था । यह नि:संदेह है । कल्पसूत्र में भगवान महावीर के पिता सिद्धार्थ के तीन नामों का उल्लेख है- १. सिद्धार्थ, २. श्रेयांस ३. यशस्वी । माता त्रिशला के भी तीन नामों का उल्लेख है - १. त्रिशला, २. विदेहदिन्ना और ३. प्रियकारिण । 68 १२ भगवान महावीर की माता रानी - त्रिशला केलिये विदेहदिन्ना तथा 'भगवान के लिये विदेह, वेसालिए शब्दों का प्रयोग हुआ है। वह भगवान के जन्मक्षत्र के लिये नहीं परन्त उनके गुण-निष्पन्न हैं। इसलिये इन शब्दो में भगवान महावीर के जन्मस्थान की धारणा करना आधुनिक विद्वानों की एकदम आत मान्यता है। हम इस की विस्तार से विवेचना कर आए हैं। अतः यहां टिपण करना अनावश्यक है। १३. हमने यहां भगवान महावीर के प्राचीन पक्षधरों की क्षत्रियक्षेत्र की जन्मस्थान की मान्यता की सिद्धि भौगोलिक प्रमाणों का उल्लेख करके तर्कसंगत विवेचन से कर दिया है। १४ वैशाली को भगवान महावीर का जन्मस्थान मानने वाले अर्वाचीन पक्षधरों के पास अन्य प्रमाणों के अभाव के साथ भौगोलिक प्रमाणों का भी प्रायः अभाव ही है। इस विषय में आजतक वे मौन पाए जाते हैं। इनकी सारी भ्रांत मान्यताओ पर हम विस्तार से उहापोह कर आए हैं। अतः स्पष्ट है कि इन की वैशाली की जन्मस्थान की मान्यताएं मात्र अटकलों पर आधारित होने से स्वीकार नहीं की जा सकतीं। १५. अतः सब दृष्टियों से विचार करने पर प्राचीन मान्यता ही सच्ची प्रतीत होती है। आधूनिक विद्वानों की खोखली, भ्रांत और गलत धाराणाओं और
SR No.010082
Book TitleBhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1989
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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