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________________ पहा हा ११४ लछाड़ में जैनधर्मशाला मंदिर उस समय के राजा ने बाहरी शुत्रओं के आक्रमण से बचने केलिये अपनी राजधानी की सुरक्षा केलिए इस सुरक्षित स्थल को चुना होगा। ये छोटी बड़ी सुदृढ़ पहाड़ियां आज भी सुदृढ़ किले का काम कर रही हैं। उत्तर-पर्वत श्रेणी के उत्तर पश्चिम में कुंड नामक वह पवित्र स्थान है, जहां भगवान महावीर सर्वप्रथम माता के गर्भ में आए थे। यह स्थान आज भी गर्भ कल्याणक के नाम से प्रसिद्ध है इस स्थान के सभी कोड़ा-बाहमण जाति की बस्ती है जिसके नाम पर उस कोडालगोत्रीय ऋषभदत्त ब्राह्मण के गोत्रका नाम कल्पसूत्र में आया है। जिस की स्त्री देवानन्दा के गर्भ में सर्वप्रथम भगवान महावीर आए थे। यहां पर दो जैनमंदिर हैं। जो क्रमशः गर्भ-कल्याणक और दीक्षा-कल्याणक के नाम से प्रसिद्ध हैं। भगवान महावीर का दीक्षास्थान भी यही हैं। भगवान महावीर देवलोक के पुष्पोत्तरविमान से च्युत होकर ब्राह्मणकुंडग्रामनगर में कोडाल गोत्रीय ब्राह्मण ऋषभदत्त की भार्या देवानन्दा की कुक्षी में अवतरित हुए थे। उसी गर्भ को शकेन्द्र ने दूत द्वारा क्षत्रियाणि माता त्रिशला के गर्भ में स्थापित कर दिया था। जिस क्षत्रियकंडनगर का हम ऊपर जिकर कर आए हैं वहां पर जाने केलिये ब्राहमणकुंडनगर से बहुत बड़े और पांच छोटे-छोटे पहाड़ों तथा फिर एक बहुत बड़े सघणवण युक्त पहाड़ (सात पहाड़) लांघने पड़ते हैं। यह जन्मकल्याणक पर्वतश्रेणी के दक्षिण-पार्श्व पर अवस्थित है। हम लिख आए हैं कि अजातशत्र ने वैशाली को ध्वंस कर दिया था। वहां की प्रजा को विवश होकर अपनी मातृभूमि को छोड़ना पड़ा। भगवान महावीर के बड़े भाई क्षत्रियकुंड के राजा नन्दीवर्धन जो लिच्छिवियों (राजा चेटक) के जंवाई (दामाद) थे इसलिए वैशाली से लिच्छिवियों के अनेक परिवार इन के संरक्षण में आकर बस गए। यह नगर लिच्छिवियों का निवासस्थान होने से लिच्छिाड़ नाम से प्रसिद्धि पा गया। वर्तमान लिच्छुआड़ नाम का नगर इस प्रसंग की पुष्टि करता है। इसी लच्छुआड़ में मुर्शिदाबाद (बंगाल) निवासी बीसा ओसवाल (बड़े साजन) वंशीय दुग्गड़ गोत्रीय जैन श्वेतांबर धर्मानुयायी श्री प्रतापसिंह जी के सुपुत्र राय धनपतसिंह जी बहादुर के बनवाये हुए एक बहुत बड़ी जैनधर्मशाला और भगवान महावीर स्वामी का बैनमंदिर हैं। यहां जो यात्री जन्मस्थान अत्रियकुंड की यात्रा करने आते हैं, इसी धर्मशाला में निवास करते हैं। इसी गांव के निकट जनसंघडीह नामक गांव है। जो चैन संघर्गह अपभ्रंश सर्वथा प्रतीत होता है। लच्छुबाड़ से दो मील दूर बसट्टी गांव है जो
SR No.010082
Book TitleBhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1989
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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