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________________ ८० भारतीयों की प्रांत मान्यताएं (२) भगवान महावीर की लच्छुआड़ के निकट क्षत्रियकुंड ब्राह्मणकंड में पदार्पण भगवान ४२ वर्षकी दीक्षा पर्याय में अनेक बार ब्राह्मणकंड और क्षत्रियकंड पधारे थे, पर इस का व्यवस्थित उल्लेख नहीं मिलता तो भी यहां पधारेण के प्रसंगों के कतिपय उल्लेख मिल ही जाते हैं। जो इस प्रकार हैं (क) भगवान राजगृही में दूसग चौमासा करके चम्पा जाते हए ब्राह्मणकंडग्राम में आए थे। वहां नन्द और उपनन्द ब्राह्मणों के दो महल्ले थे। भगवान के साथ रहने वाले गोशाल ने यहां उपनन्द के मोहल्ले को तेजोलेश्या मे जला दिया था। (ख) केवलज्ञान प्राप्त होने के बाद भगवान ब्राह्मणकंडग्राम में पधारे। यहां एक पर्वतघाटी पर बहशालचैत्य उद्यान में ममवमरण में विराजमान होकर धर्मदेशना दी पश्चात इस अवसर पर ऋपभदत्त ब्राह्मण तथा उमकी भार्या देवानन्दा ब्राह्मणी को श्रमण-श्रमणी की दीक्षाएं दी। (ग) भगवान दमग बार यहां दूसरी पर्वतघाटी पर आकर ममवमरण में अपने जमाता जमाली को ५०० क्षत्रियों के साथ दीक्षायें दी। (घ) भगवान तीसरी बार यहां नीमरीघाटी पर आकर समवसरे और अपनी पुत्री प्रियदर्शना को १००० क्षत्राणियों के साथ दीक्षाएं दी। 66 ब्राह्मण दम्पत्ति ब्राह्मकंड के और जमाली एवं प्रियदर्शना हिन १५०० क्षत्रिय-क्षत्राणियां क्षत्रियकंड नगर के निवामी थे। बाह्मणकंड और क्षत्रियकंड-कंडपर महानगर के दो विभाग थे। इलिये दोनों के मध्यभाग की तीनों पर्वतघाटियों पर दीक्षाएं दी गयीं थीं। (ङ) आचार्य हेमचन्द्र ने त्रिष्टि शलाका पम्प चरित्र पर्व १० मग ८ श्लोक २८, २९ में लिखा है कि भगवान क्षत्रियकंड पधारे उम ममय क्षत्रियकंड का गजा नन्दीवधन उनके दर्शन करने आये। यथा स्वामिनं समोसतं नृपति नन्दीवर्धनः। ख्या महत्या अपत्या च तत्रोपेयाय बन्दितः।। (च) आचार्य गुणभद्र कृत महावीरचर्चाग्य प्रम्नाव ८ में भी ऐमा ही लिखा भगवान महावीर ने क्षत्रियकंड एवं ब्राह्मणकंड में चौमामा इलिये नहीं किया कि पूर्व-पर्गिचत स्थान और परिवार में अधिक रहना उन्हें उचित नहीं लगा। चाहे अपने को ममता न हो तो भी दमरे ममताल जीव अथवा मंवन्धी
SR No.010082
Book TitleBhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1989
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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