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________________ पातिक जिवन्तो सेना १९७ है। यह दो प्रकार का है सातादेवनीय और मसालावेदनीय । इन दोनों के पुन अनेक भेद है जिसे अन्य म गिनाया नही गया है। ४ मोहनीय काम जिस कर्म के प्रभाव से जीवात्मा जानती हुई भी मूढ़ता को प्राप्त हो जाये उसको मोहनीय कर्म के नाम से अभिहित किया गया है। इसके प्रमुख दो भेद है दशन मोहनीय और चारित्र मोहनीय । दर्शन मोहनीय पुन तीन प्रकार का है (१) सम्यक्त्व मोहनीय (२) मिथ्यात्व मोहनीय और ( ३ ) सम्यक्त्व मिथ्यात्व मोहनीय (मित्र मोहनीय )। सदाचार म मूढता पैदा करनेवाले चारित्र मोहनीय कम के दो भव बताये गये है कषाय मोहनीय और नोकषाय मोहनीय । कषाय मोहनीय के सोलह भेद अन्य म बताये गये ह और नोकषाय के सात अथवा नौ भेव है। ५ मायुकम जिस कम के प्रभाव से जीवात्मा अपनी आय को पूर्ण कर उस कम को आयु १ उत्तराध्ययन ३३१७ तथा उत्तराध्ययनसूत्र एक परिशीलन १५७ । २ मोहणिज्ज पि दविह दसण चरण वहा । वसर्ण तिविह वुत्त वरण विह भवे ।। उत्तराध्ययन ३३३८ २९६७२ ५६ २९ ३२१ २ तथा उत्तराध्ययनसूत्र एक परिशीलन प १५७ ।। ३ सम्मत चेव मिच्छत सम्मामिच्छत्तमेवय । एयायो तिन्नि पयडीओ मोहणिज्जस्सदसण ।। उत्तराध्ययन ३३९ तथा उत्तराध्ययनसूत्र एक परिशीलन पृ १५७ १५८ । ४ परितमोहण कम्म दुविह तु वियाहियं । कसाय मोहणिज्ज व नोकसायं तहेवय ।। उत्तराध्ययन ३३१ तथा उत्तराध्ययनसूत्र एक परिशीलन पृ १५८ । ५ सोलस विहनैएवां । कम्मं तु कसायजं ॥ उत्तराध्ययन २०११ सपा उत्तराध्ययनसूत्र एक परि शीलन १ १५९ ६ सत्त विह नवविह वा कम्म प नोकसाया। उत्तराध्ययन ३३११ तथा उत्तराध्ययनसून एक परिचालन
SR No.010081
Book TitleBauddh tatha Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendranath Sinh
PublisherVishwavidyalaya Prakashan Varanasi
Publication Year1990
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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