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________________ धार्मिक सिद्धान्तों से तुलना : ११ १ मोक्ष मोक्ष शब्द की उत्पत्ति मुच धातु से हुई है जिसका व्यथ छटकारा प्राप्त करना होता है | अध्यात्म विषय होने से यहाँ पर ससार के बन्धनभत कर्मों से छटकारा जीव को होता है तथा कमबन्धन से रहित जीव को मुक्त जीव कहा गया है । अत मोक्ष का अर्थ हुआ सब प्रकार के बचन से रहित जीव द्वारा स्वस्वरूप की प्राप्ति । २ बहि बिहार यहाँ पर विहार शब्द का अर्थ है अम-जरा-मरण से व्याप्त ससार । अत बिहार का अथ हुआ ससार के आवागमन से रहित स्थान या जन्म मरणरूप ससार से बाहर | मोक्ष की प्राप्ति हो जाने के बाद जीव का ससार म आवागमन नही होता है अत प्रथम उसे बहि विहार कहा गया है । ३ सिद्धलोक ग्रन्थ म निर्वाण अयाबाध सिद्धि लोकाग्र क्षम जीव और अनाबाध इन नामो का उल्लेख मिलता है परन्तु इस स्थान को पूर्ण रूप से सयम का पालन करनेवाले महर्षि लोग ही प्राप्त करत हैं क्योकि यह स्थान सर्वोत्तम सर्वोच्च तथा सबके लिए कायाणकारी है । इसम सर्वप्रकार के कषायो से विरत होकर परमशान्त-अवस्था को प्राप्त होने से इसको निर्वाण कहा गया है । लोक के अग्र अन्त भाग में होने से इसको लोकाग्र नाम से भी पुकारत है क्योकि यहाँ से लोक का यह लोक का प्रधान भाग होन से शीर्षस्थानापन्न भी है। जीब सिद्ध बुद्ध एव मुक्त होकर अपने अभीष्ट को प्राप्त कर जाता है तथा वह सिद्धलोक सभी पापो के उपशमन होने से परमकल्याणरूप और सर्वोत्कृष्ट है । सिद्धलोक को चला प्रारम्भ भी होता है और मोक्ष को प्राप्त करनेवाला १ बन्धमोषखपहण्णिणो २ बहि विहाराभिनिविटठचित्ता । वही १४|४| ससारपारनिच्छिन्न । वही ३६।६७ । ३ अलोए पहिया सिद्धालोयग्गेय पइटिठया । उत्तराध्ययन ३६।५६ तथा निव्वाण ति अबाह ति सिद्ध लोगग्गमेव य । खेम सिव अणावाह ज चरन्ति महेसिणो ॥ अकलेवरसेणि मुस्सिया सिद्धिगो मलोयं गच्छसि । खेमच सिव अणुत्तर उत्तराध्ययन सूत्र ३६।२६९ । वही २३१८३ । वही १ १३५ ।
SR No.010081
Book TitleBauddh tatha Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendranath Sinh
PublisherVishwavidyalaya Prakashan Varanasi
Publication Year1990
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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