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________________ ८४ पौष तथा नपर्व (३) ममि (विदेह का राजा) और (४) मग्गति (गधार का राजा)। इसका विस्तृत वणन टीका म प्राप्त है। य चारो प्रत्येक बुद्ध एक साथ एक ही समय में देवलोक से व्युत हुए एक साथ प्रवजित हुए एक ही समय मे बुड हुए एक ही समय में केवली बने और एक साथ सिद्ध हुए। इनम से करकण्डु बढ़े बल को देखकर प्रतिबुद्ध हुआ। द्विमुख को इद्रस्तम्भ क देखने से वरा य हुआ तथा नमि राजा ने चडियो के शब्दो को सुनकर ससार का परित्याग कर दिया और नग्गति राजा मलरीविहीन आम्रवृक्ष को देखकर वैराग्यवश दीक्षित हो गए। उत्तराध्ययन की कथाओ के आधार पर करकण्ड और द्विमुख का अस्तित्व भगवान महावीर के शासनकाल म सिद्ध होता है । उसके दो मुख्य आधार है (१) करकण्डु पद्मावती का पुत्र था। वह चटक राजा की पुत्री और दधिवाहन की पत्नी थी। य दोनों भगवान् महावीर के समसामयिक थे। (२) द्विमुख की पुत्री मदन मञ्जरी का विवाह उज्जनी के राजा चण्ड प्रद्योत के साथ हुआ था। यह भी भगवान महावीर के समसामयिक थे। चारो प्रयक बुद्ध एक साथ हुए थ इसलिए उन चारो का अस्तित्व भगवान महावीर के समय मे ही सिद्ध होता है। अहंत अहन शब्द श्रमण-सस्कृति का प्रिय शब्द ह। श्रमण लोग अपने तीर्थहरों या वोतराग आत्मामो को अहंन कहत थ । बौद्ध और जैन-साहित्य म अहन शब्द का प्रयोग हजारोबार हुआ है । जैन लोग पाहत नाम से भी प्रसिद्ध रह है। भगवान् महावीर और बुद्ध समकालीन थे और स्वाभाविक रूप से दोनों की वाणी और भाव म बहुत अधिक साम्य है । बहुत से शब्द और भाव तो दोनो धर्मों के प्रन्यो म समान रूप से देखकर लोग आश्चयचकित हो जाते हैं। भगवान बुद्ध और उनके शिष्यो के लिए भी अरहत विशेषण बौद्ध-ग्रन्यो म पाया जाता ह जो कि एक विशिष्ट अवस्था या उपलब्धि का सूचक है । अहत् अघ का विकृत रूप है। अध ऋग्वेद म भी आया है। वहां - उमराध्ययनसूत्र १८४६ । १ करकण्ड कलिगेसु पचाले सुय दुम्मुहो। नयी राया विदेहेसुगन्धारेसुयनग्गई ॥ २ उत्तराध्ययन नियुक्ति गाथा २७ । ३ सुखबोषापत्र १३३ । ४ वही १३३-१३५ । ५ वही पत्र १३६ । ६ ऋग्वेद २।३।१ २।३।३ .
SR No.010081
Book TitleBauddh tatha Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendranath Sinh
PublisherVishwavidyalaya Prakashan Varanasi
Publication Year1990
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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