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________________ ८२ बोर सपा जनवम कश्यप और गौतम । खुद्दकनिकाय के अन्तगत बुद्ध-वश मे शाक्य मुनि के पर्व चौबीस बद्धों का वणन है । नये नाम इस प्रकार है--दीपकर को डन्ज मगल सुमन रेवत सोभित अनोमदस्सी पदुमनारद पदुमुत्तर समेष सुजात पियवस्सी अत्थदस्सी धम्मदस्सी सिद्धत्य तिस्स और फुस्स। अगुत्तरनिकाय म बद्ध के तथागत बुद्ध और प्रत्यक बद्ध ये दो प्रकार बतलाये गये हैं। दीघनिकाय म तथागत बद्ध को सम्यक सम्बद्ध कहा गया है। उत्तरकालीन परिभाषाओ के अनुसार सम्यक सम्बद्ध वह व्यक्ति है जिसन करुणा से प्रेरित होकर जगत के सारे प्राणियो को दुख से मुक्त करन का भार अपने कन्धो पर लिया है। स्वय बद्ध हुए दूसरे लोगो का जो अनेक प्रकार की रुचि शक्ति और योग्यतावाले लोग है उपकार करना सम्भव नही है अत वह बद्धत्व प्राप्त करने के लिए पुण्य-सम्भार और शान-सम्भार का अर्जन करता है। इसके लिए वह तीन असख्यय क पपर्यन्त अनक योनियो म ज म लेकर छह पार मिताओ को पूर्ण करता ह यथा-दान पारमिता शील पारमिता शान्ति पारमिता वीय पारमिता यान पारमिता एव प्रज्ञा पारमिता। प्रज्ञा पारमिता को छोडकर शेष पांच पारमिताय पु य सम्भार तथा प्रज्ञा पारमिता ज्ञान-सम्भार कहलाती है। जिस दिन उसन द्धत्व प्राप्त करने का सकल्प लिया था और अनन्त जमो के बाद जिस दिन उसे बोधि प्राप्त होती है इसके बीच उसकी सज्ञा बोधिसत्त्व होती ह । जिस दिन उसे सम्यक सम्बोधि का लाभ होता है उस दिन प्रज्ञा पारमिता भी पण हो जाती है और उस दिन से वह सम्यक सबद्ध कहलान लगता है। वह करुणा और प्रज्ञा का पज हाता ह । दोनो उसमें समरस होकर स्थित होती ह और वह करुणामय अनत ज्ञानवान सवज्ञ और अनत लाकोत्तर शक्तियो से समवित हो जाता है । वह सभी प्राणियो को दुख से मुक्त करन के माग को देशना करता है। भगवान बद्ध इसी तरह के सम्यक सम्बद्ध थे। प्रत्यक बद्ध वह व्यक्ति है जो अपन को दुम्स से मुक्त करन का सकल्प लेकर और इसके लिए प्रवजित होकर शील समाधि आर प्रज्ञा भावना के द्वारा अर्थात आय अष्टाङ्गिक माग के अभ्यास द्वारा चार आयसत्यो का साक्षात्कार कर अपने १ दीघनिकाय महापदानसुत्त । २ बौद्धधम के विकास का इतिहास पृ ३५६ । ३ अगुत्तरनिकाय २।६५ तथा डिक्शनरी आफ पालि प्रापर नेम्स भाग २ २९४ । ४ दीघनिकाय ( सामन्नफलसुत्त ११५)। ५ वही दोषनिकाय द्वितीय भाग पृ ११ ।
SR No.010081
Book TitleBauddh tatha Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendranath Sinh
PublisherVishwavidyalaya Prakashan Varanasi
Publication Year1990
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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