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________________ पम्मर में प्रतिपादित नासा ५७ चार भेद बताये गये हैं यथा-सूक्ष्म वादर पर्याप्त और अपर्याप्त । बादर पर्याप्त बीव के पांच भेदों का उल्लेख किया गया है। ३ वनस्पतिकायिक जीव वृक्ष पौषे लतायें आदि हो जिनके शरीर है उन्हें वनस्पतिकायिक जीव कहते है । पृथिवी के भेदों की तरह इसके भी सूक्ष्म पावर पर्याप्त भौर अपर्याप्त ये पार मेर बताये गये है। बादर-पर्याप्त-वनस्पतिकाय के साधारण शरीरवाली वनस्पति और दूसरी प्रत्येक शरीरवाली वनस्पति ऐसे दो भेद किये गये हैं। साधारण मोर प्रत्येक के भी प्रकारो का उलेख है। ४ मनिकायिक जीव ऐसे जीव जिनका शरीर ही अग्नि है अग्नि से पृथक नहीं हो सकते । पृथिवी १ दुविहा माउजीवा उसुहमा बायरा तहा। पज्जन्तमपज्जन्ता एवमेए दुहा पुणो ॥ उसराध्ययनसूत्र ३६६८४ । २ वायरा जे उ पज्जन्ता पचहा त पकित्तिया । सुबोदए य उस्से हरतणमहिया हिमे ॥ वही ३६४८५ । ३ दुविहा वणस्सई जीवा सुहमा बायरा सहा । पज्ज-तमपज्जन्ता एवमेए दुहा पुणो ॥ वही ३६०९२। ४ बायराजे उ पज्यत्ता दुविहा ते विया हिया। साहारणसरीराय पत्तेगा य तहे व य ॥ वही ३६९३ । ५ साहारणसरीरा उणगहा ते पकित्तिया। वही ३६०९६-९९। मुसुण्डी य हलिदाय उणगहा एवमानयो ।। पत्तेग सरीरा उणेगहा ते पकित्तिया । हरिय काया य बोखल्या पत्तया इति आहिया । पही ३६१९४९५।
SR No.010081
Book TitleBauddh tatha Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendranath Sinh
PublisherVishwavidyalaya Prakashan Varanasi
Publication Year1990
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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