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________________ भूमिका : ९ जैन- अनुमति के अनुसार इस भरत क्षेत्र में अब कमयुग है उसके पूर्व भोगबुग था। भोगयुग की अवस्था में मानव स्वर्णिम आनन्द प्राप्त करता था । मनुष्य की सारी आवश्यकताए कल्पवृक्ष से पूरी हुआ करती थीं । परन्तु यह नैसर्गिक सुख अधिक दिनों तक न रह सका जनसंख्या बढ़ी तथा मनुष्य की आवश्यकताए नित्य नया रूप धारण करने लगीं । फलत भोगयुग कमयुग में बदल गया । इसी समय चौदह कुलकर या मनु उत्पन्न हुए। ये कुलकर इसलिए कहलाते थे कि इन्होंने कुल की प्रथा चलायो तथा कुल के उपयोगी आचार रीति रिवाज सामाजिक व्यवस्था का निर्माण किया । चौदह कुलकरों में श्री नाभिराय अन्तिम कुलकर हुए । इनके पुत्र ऋषभदेव थे जो जैनधर्म के आदि प्रवतक हुए। इन्होंसे जैनधम की परम्परा का प्रारम्भ है। भगवान् ऋषभदेव को जैन ग्रन्थों के अनुसार जिन या तीथकर माना जाता है । सम्पूर्ण जैनधम तथा दशन ऐसे ही चौबीस तोथकरों की वाणी या उपदेश का सकलन है । इन चौबीस तीथकरों में भगवान ऋषभदेव आद्य तथा भगवान महावीर अन्तिम तीथकर माने जाते हैं । इनके अतिरिक्त और भी २२ तीथकर हुए- अजितनाथ सम्भवनाथ अभिनन्दननाथ सुमतिनाथ पद्मप्रभ सुपाश्वनाथ चन्द्रप्रभ सुविधिनाथ शीतलनाथ श्रेयांसनाथ वासुपूज्य विमलनाथ अनन्तनाथ धर्मनाथ शान्तिनाथ कुथुनाथ अरनाथ मल्लिनाथ मुनि सुव्रत नमिनाथ अरिष्टनेमि और पार्श्वनाथ । अन्तिम तीथकर भगवान महावीर का जन्म ५९९ ई प के आसपास विदेह की राजधानी वैशाली के कुण्डनपुर ग्राम में हुआ था जो आधनिक मुजफ्फरपुर जिले का वसुकुण्ड है । उनके पिता सिद्धाथ एक क्षत्रिय कुल के प्रमख थे और माता त्रिशला विदेह के राजा की बहन थी । जैनागम एव पुराण अन्यों के उल्लेखों से पता चलता है कि वघमान का प्रारम्भिक जीवन वैभव से परिपूर्ण था। उन्हें राजकुमारोचित मभी विद्याओ की शिक्षा दी गयी । शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात दिगम्बर-परम्परानुसार वे तीस वर्ष की अवस्था तक अविवाहित हो रहे और तत्पश्चात् प्रव्रज्या ग्रहण की। लेकिन इसके विपरीत श्वेताम्बर - परम्परा के अनुसार शिक्षा प्राप्ति के पश्चात् युवा होन पर वषमान का विवाह यशोदा नामक एक राजकुमारी से हुआ जिससे एक पुत्री भी उत्पन्न हुई थी। उस पुत्री का विवाह जामालि नामक एक क्षत्रिय युवक से हुआ था जो कालान्तर में महावीर का शिष्य भी बन गया था । बद्ध के विपरीत महाबीर अपने १ जैन हीरालाल भारतीय सस्कृति म जैनधर्म का योगदान प१ । २ जैन जगदीशचन्द्र जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज पु १ । ३ हरिवंशपुराण ६६।८ । ४ भारतीय सस्कृति मे जैनधम का योगदान प २४ ।
SR No.010081
Book TitleBauddh tatha Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendranath Sinh
PublisherVishwavidyalaya Prakashan Varanasi
Publication Year1990
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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