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________________ समानता और विभिन्नता २३७ शरीर पर विलेपन करना एव पुष्पमाला आदि का पहनना इन सब वस्तुओं का परित्याग कर दिया था। परन्तु इतनो समवेदना प्रकट करने पर भी वह अपने पति को दुख से छुडाने म सफल न हो सकी। इस प्रकार ध्वनिरूप से कुलीन स्त्री के गुणों का भी वर्णन किया गया है । मादर्श नारी के रूप म परिवार म पतिव्रता नारी का प्रथम स्थान था। राजीमती इसी प्रकार स्त्रीजनोचित सवलपणों से युक्त थो। अर्थात् कुलीन और सुशील स्त्रियो में जो गुण और लक्षण होने चाहिए वे सब उसमें विद्यमान थे। जिस समय राजीमती को पशुओ की दीनदशा को देखकर विवाह का सकल्प छोडकर अरिष्टनेमि के वापस लौटने और दीक्षा ग्रहण करने का समाचार मिला उस समय उसका सारा ही हष विलीन हो गया और शोक के मारे वह मच्छित हो गयी । लेकिन अरिष्टनेमि के महान् वैराय को बात सुनकर वह भी अनेक राजकयाओं के साथ दीक्षित हुई तथा ससार से विरक्त हो गयी। अत भारत का मुख उज्ज्वल करनेवालो रमणियो में राजोमती का स्थान विशेष प्रतिष्ठा को लिय हुए है । इस प्रकार बहुत सी सहचरियो को दीक्षा देकर और उनको साथ लेकर भगवान् अरिष्टनेमि को बन्दन करन के लिए वह रैवतक पवत पर जा रही थी। अचानक जोर को वर्षा न सभी को सुरक्षित स्थान खोजने के लिए विवश कर दिया । सब इधर उधर तितर बितर हो गयी। राजीमती एक गुफा में पहची जहाँ रणनेमि ध्यान में लीन खड थे। रघनमि ने राजी मती को देखा और सासारिक विषय भोगो का आनन्दपूर्वक सेवन करने की अभ्यथना की । तब राजीमती ने स्पष्ट कहा- रथनमि । मैं तुम्हारे ही भाई की परियक्ता है और तुम मुझसे विवाह करना चाहते हो ? क्या यह वमन किये को फिर चाटन के समान घणास्पद नही है ? तुम अपने और मेरे कुल के गौरव को स्मरण करो । इस प्रकार के अघटित प्रस्ताव को रखते हुए तुम्ह लज्जा आनी चाहिए। राजीमती की १ भारिया मे महाराय ! अणस्ता अणुव्वया । असुपुण्णहिं नयणहि उर मे परि सिंचई । अन्नपाण चव्हाण च गन्ध-मल्ल विलेवण । मएनायमणाय वा सा बाला नोवभगई ॥ उत्तराध्ययन २ ।२८ २९ तथा उत्तराध्ययनसूत्र एक परिशीलन पृ ४ ४ । २ पक्खदेवलिय जोइ धूमकेउं दुरासय । नेच्छन्ति वतय मोत्तु कुले जाया अगषणे ॥ घिरत्युतेजसो कामी ! जोत जीवियकारणा। वन्त इन्छसि बावेळ सेय ते मरण भवे ।। उत्तराध्ययन २२४२४३ । - -
SR No.010081
Book TitleBauddh tatha Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendranath Sinh
PublisherVishwavidyalaya Prakashan Varanasi
Publication Year1990
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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