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________________ समानता और विनिमता: २२३ भल फलों फलों और पत्तों के रस को निकालकर उनकी गन्ध से शरीर को सुगन्धित किया जाता था। लकडी का काम करनेवाले बढई कहलाते थे। इनका काय भवन निर्माण और कलात्मक वस्तुए बनाने से लेकर कृषि वस्त्र उद्योग से सम्बन्धित औजार खिलोना आदि का निर्माण सभी कुछ था । इसके अतिरिक्त वे रथ बलगाडी आदि के अग-प्रत्यग का निर्माण करते थे। लकडी का काय करनेवालो को धम्मपद में तच्छक या तच्छका कहा गया ह । श्रीमती टी डब्ल्यू रोज डेविडस के मत में ये रथकार अथवा यानकार ऐसी आदिवासी जातियां थीं जो वशानुगत रूप में रथ निर्माण या लकडी का काम किया करती थी । कृषि कार्यों में प्रयुक्त होनेवाले सभी औजार लोहे से ही बनते थे जिन्हें बनानेवालो को लोहार या कुम्भकार कहते थे। बाण बनानवाले लोगो को चापकार या उसुकार कहा जाता था। ये विभिन्न क्रियामों को सम्पन्न करने के बाद बाण बनाते थे। मालाकार फलों की माला आदि बनाते थे और उनकी कला भी शिल्प रूप में उल्लिखित है। पातु उद्योग में अनकानेक लोग लगे हुए थ जिन्ह लोहार स्वणकार और कसेरा कहा जाता था। इन सबमें प्रमख लोहार होते थे जो लोहे से सम्बन्धित कार्य करत थ । लोहा और उसके तकनीकी ज्ञान तथा उसे पिघलाकर उससे विविध औजारो के बनाने की एक विकसित प्रणाली का आभास मिलता है। लोहे को साफ कर उसे कडा और मजबत बनाकर उससे विविष औजारो के बनाने की एक विकसित प्रणाली का आभास मिलता है। लोहे को साफ कर उसे कडा और मजबत बनाकर उससे विविध औजारो का निर्माण किया जाता था। इन औजारो में युद्ध में प्रयुक्त होनेवाले हथियार और सनिको के पहनने के कवच भी बनते थे। लोहे के बाण भी बनाये जाते थे। बाण बनानेवालो को इषुकार या उसुकार कहा जाता था। ये इषुकार १ प्राचीन पालि-साहित्य से ज्ञात सस्कृति का एक अध्ययन विवेदी कृष्ण कान्त २२ अप्रकाशित शोषप्रवन्ध । २ दारु नमयन्ति तच्चका । पम्मपद गाथा-सख्या १४५ । ३ ६ गयलान्स ऑफ दि बुद्ध जिल्द १ पृ १ । ४ उसुकारा मयन्ति सेनन । पम्मपद गाथा-सल्या १४५ । ५ बढकालीन भारतीय भूगोल उपाध्याय भरतसिंह पृ ५३ । ६ सुत्तनिपात कासिमारताणसुत्त १४ कैम्बिन हिस्ट्री ऑफ इण्डिया रैप्सन ई जे पृ १८३ प्री-बुद्धिस्ट इण्डिया मेहता एन रतिवाल १ २४५ ।
SR No.010081
Book TitleBauddh tatha Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendranath Sinh
PublisherVishwavidyalaya Prakashan Varanasi
Publication Year1990
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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