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________________ प्रतिपादित मनोविज्ञान से तुलना : ११७ विषय है । सुगन्ध राग का कारण है। रस को रसनेन्द्रिय ग्रहण करती है और रस रसनेन्द्रिय का ग्राह्य विषय है । मनपसन्द रस राम का कारण और मन के प्रति फलस्स देष का कारण है। स्पशको शरीर ग्रहण करता है और स्पश स्पशनेन्द्रिय का ग्राह्य विषय है । सुखद स्पश राग का तथा दुखद स्पर्श देष का कारण है ।' इस प्रकार उपयुक्त तथ्यों को देखने से पता चलता है कि स्पर्शनेन्द्रिय के वशी भूत होकर हाथी रसनेन्द्रिय के वशीभूत होकर मछली घ्राणन्द्रिय के वशीभूत होकर भ्रमर चन-इन्द्रिय के वशीभत होकर पतगा और श्रोत्रेन्दिय के वशीभत होकर हिरण मृत्यु का ग्रास बनता है। जब एक इन्द्रिय के विषयों में आसक्ति मृत्यु का कारण बनती है तो फिर पांचों इन्द्रियों के विषयों के सेवन में आसक्त मनुष्य की क्या गति होगी? वास्तव में इन्द्रिय-दमन का अर्थ विषयो से मंह मोडना नही बल्कि विषयों के मूल में सन्नड रागात्मक भावनाओ को समाप्त करना ह । इस सम्बध में मनोवैज्ञानिक दष्टिकोण से वर्णन दोनो ग्रन्थों में किया गया है। १ उत्तराध्ययन ३२१४९ तथा ३२०५ ५३ ५४ ५८ । २ वही ३२१६२ तथा ३२।६३७१७२। ३ वही ३२१७२ तपा ३२१७६८ ८७९४ ॥ ४ जैन बोर तथा गीता के प्राचार-दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन भाग १ पृ ४७२।
SR No.010081
Book TitleBauddh tatha Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendranath Sinh
PublisherVishwavidyalaya Prakashan Varanasi
Publication Year1990
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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