SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २ मानिनिधिमान पक्ष आदि इन्द्रियों और मन की सहायता से उत्पन्न होनेवाला शान बानि निबोधिक कहलाता है। जैन-दशन म इसका प्रचलित नाम मतिज्ञान है क्योंकि यह इन्द्रियादि की सहायता से होता है। ३ मधिज्ञान अवधि का अर्थ है सीमा । जो ज्ञान इद्रियादि की सहायता के बिना कुछ सीमा को लेकर अन्त साक्ष्यरूप होता है वह अवधिज्ञान कहलाता है। मन पर्यायज्ञान दसरो के मनोगत विचारों को जानने की शक्ति के कारण इसे मन पर्यायज्ञान कहा गया ह । यह दिव्यशान को दूसरी अवस्था है और अवधिज्ञान से श्रेष्ठ है। मोहनीय ज्ञानावरण दशनावरण और अन्तराय कम के क्षय से कैवल्यज्ञान प्रकट होता है । यह ज्ञान की सर्वोच्च अवस्था है। इसीलिए उत्तराध्ययन में इसे अनुत्तर सवप्रधान सम्पूण प्रतिपूण आवरणरहित अन्धकाररहित विशुद्ध लोकालोक प्रकाशक बतलाया गया है। इस ज्ञान को धारण करनेवाले को केवली केवलज्ञानी या सवज्ञ कहा गया है। इस ज्ञान की प्राप्ति होने पर जीव उसी प्रकार सुशोमित होता है जिस प्रकार आकाश में सूय । इस ज्ञान की प्राप्ति हो जाने पर जीव घेष कर्मों को नष्ट करके नियम से मोक्ष जाता है । १ जैन-बम-दर्शन महता मोहनलाल पृ १५७ । २ उत्सराध्ययनसूत्र एक परिशीलन पृ २१२ । ३ वही पृ २१२ । ४ तओ पच्छा अणुतर अणत कसिण पडिपुण्ण निरावरण वितिमिर विसुद्ध लोगालोगप्पभावग केवल धरनाणदसण समुप्पाडेइ । उत्तराध्ययन २९।७२। ५ उग्ग तब चरित्ताण जायादोणिवि केवली। वही २२।५ । ६ सन्नाणनाणोवमए महेसो अणुत्तर चरिउ धम्मसचय । अणुसरे नाणघरे अससी मोभासह सूरिए वडतालक्खे । __वही २११२३ । ७ जाव सजोगी भवइ ताक्य इरिया बहियकम्म बन्धइ सुहफरिस दुसमयठिइय । त पढमसमएबट बिइय समए वइय तइय समए निज्जिण । त बब पुटठ उदीरियं वेश्य निजिण्ण सेयालेय अकम्म चावि भवइ ।। वही २९७२।
SR No.010081
Book TitleBauddh tatha Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendranath Sinh
PublisherVishwavidyalaya Prakashan Varanasi
Publication Year1990
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy