SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११५ बोडतवा जमवर्म सम्यग्दृष्टि कुशल-अकुशल का ज्ञाता होता है। वह अकुशल को छोड कुशल का उपाजन करता है। कायिक वाचिक तथा मानसिक सभी कर्म दो प्रकार के होते है कुशल ( भले ) और अकुशल (बुरे )। इन दोनो को भलीभांति जानना सम्यक दृष्टि है। दीघनिकाय में इन कर्मों का विवरण इस प्रकार हैअकुशल कुशल कायकम १ प्राणातिपात (हिंसा) १ अ हिमा २ अदत्तादान (चोरी) २ अचौर्य ३ मिथ्याचार ( व्यभिचार) ३ अ-व्यभिचार ४ मृषावचन (झूठ) ४ सत्य बोलना वाचिकम ५ पिशुन वचन (चुगली । ५ अपिशुन वचन ६ परुष वचन ( कट वचन) ६ अ-कटुवचन ७ सम्प्रलाप ( बकवाद ) ७ अ-सप्रलाप ८ अभिध्या ( लोभ) ८ अ-लोभ मानसकम ९ व्यापाद (प्रतिहिंसा ) ९ अ प्रतिहिंसा १ मिथ्यादष्टि १ मिथ्या दृष्टि न होना। २ सम्यक संकल्प सकप का अथ दढ निश्चय ह । सकल्प के अनेक अथ है-इछा इरादा विचार मनोरथ आदि। ठीक इच्छा या इरादा अथवा विचार ही सम्यक सकप है जिसका सम्बध चित्त के साथ रहता है। यह चित्त कुशल एव अकुशल दोनो दिशाओं म ही हो सकता है । चित्त में पहले हिंसात्मक रागयुक्त विचार उठत है । जब ये अधिक बलवान होते हैं तब मिथ्या सकप कहलात हैं। इनका ही प्रतिपक्षी सम्यकसक प है। धम्मपद म कहा गया है कि जो असार को सार और सार को असार समझते है वे मिथ्या सकल्प में पड व्यक्ति सार को प्राप्त नही करते हैं। लेकिन जो असार को असार और सार को सार समझते हैं वे सम्यक सकप से युक्त यक्ति सार को प्राप्त करते हैं । सम्यक सकप तीन प्रकार का होता है जि हे नष्क्रम्य अव्यापार एष अवि हिंसा सकल्प कहा जाता है । १ असारे सारमतिनो सारे चासारदस्सिनो । ते सार नाषिगच्छन्ति मिछासङकप्पगोचरा ।। सारच सारतो नत्वा असारन्थ असारतो। ते सार अधिगच्छन्ति सम्मासङकप्पगोचरा ॥ षम्मपद ११ १२।
SR No.010081
Book TitleBauddh tatha Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendranath Sinh
PublisherVishwavidyalaya Prakashan Varanasi
Publication Year1990
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy