SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाकिसानों से तुला : ११ रक्षक नहीं है । बरा और मृत्यु के प्रवाह में वेग से डरते हुए प्राणियों के लिए धर्म द्वीप ही उत्तम स्थान और शरणरूप है। धम्मपद में कहा गया है कि धम के अमृत रस का पान करनेवाला सुख की नीद सोता है उसका चित्त प्रसन्न रहता है। पण्डित पुरुष आर्यों द्वारा प्रतिपादित धम माग पर चलता हुमा मानन्दपूर्वक रहता है। इस प्रकार इन बारह अनुप्रक्षाओं अथवा भावनामो के चित्तवन से पित्त समभाव युक्त होता है जिनसे कषायों का उपशमन होता ह और सम्यक्त्व प्रकट होता है। वैराग्य म दृढता आती ह । ससार-सम्बन्धी दख-सुख पीडा जन्म मरण आदि का मनन चिन्तन करने से वृत्ति अन्तमखी होती है। इसी कारण इन्हें वैराग्य की जननी कहा गया है । धम्मपद म अनुप्रक्षा शद के स्थान पर भावना का प्रयोग है और यद्यपि भावनाओ को वहाँ न उस प्रकार का पारिभाषिक महत्त्व प्रास है और न उनकी एक स्थान पर १२ अथवा अन्य सख्याओं के रूप म गणना है फिर भी उत्तराध्ययन की विभिन्न अनुप्रेक्षामो के समानान्तर भाव धम्मपद म भी प्राप्त हो जाते हैं। . १ उत्तराध्ययन १४।४ तथा जैन बौद्ध तथा गीता के आचार-वशनों का तुलनात्मक अध्ययन भाग २ ३ ४३ । २ उत्तराध्ययन २३१६८ । ३ धम्मपद १६९ तथा जैन बौर तथा पीता के आचार-दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन भाग २ १ ४३१ ।
SR No.010081
Book TitleBauddh tatha Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendranath Sinh
PublisherVishwavidyalaya Prakashan Varanasi
Publication Year1990
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy