SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बाबूजी ३७ प्राप वर्षो तक मंत्री एवं प्रध्यक्ष भी रहे । श्रापकी व्यावसायिक योग्यता देखकर बंगाल चंम्बर श्राफ कामर्स एण्ड इन्ड्रस्ट्रीज तथा इण्डियन चैम्बर ग्राफ कामर्स एण्ड इन्डस्ट्रीज ने अपनी श्रोर से प्रापको पंच (Arbitrator) नियुक्त किया । विशेष हाथ था । पुरातत्व की खोज में आपने दक्षिण भारत के अतिरिक्त बिहार, उडीसा, बंगाल, राजस्थान प्रादि प्रदेशों में भ्रमण किया था और वहां से महत्वपूर्ण सामग्री खोज निकाली थी । प्राप की सर्व प्रथम पुस्तक 'कलकत्ता जैन मूर्ति यंत्र संग्रह ' सन् १९२३ में प्रकाशित हुई। फिर जैन fafa लियोग्राफी का प्रथम भाग सन् १९४५ में प्रकाशित हुआ और दूसरा भाग भी शीघ्र प्रकाशित होने की स्थिति में था कि प्रापका स्वर्गवास हो गया । पुरातत्व एवं शिला लेखों के सम्बन्ध में प्रापने एक महत्त्वपूर्ण पुस्तक का संग्रह किया है जिसका प्रकाशन आवश्यक है । देश विदेश के विद्वानों को जैन साहित्य पर शोध कार्य में प्राप बराबर सहयोग देते रहते थे। डा० विन्टर निट्ज डा० ग्वासिनव, श्री प्रार० डी० बनर्जी, रायबहादुर श्रार० पी० चन्द्रा, श्री एन० जी० मजूमदार, श्री के० एन० दीक्षित, श्रमूल्य चंद्र विद्याभूषण, डा० विभूतिभूषरगदत्त, डा० ए० प्रा० भट्टाचार्य, डा० एस० प्रा० बनर्जी आदि सैकड़ों विद्वानों ने श्रापमे जैन साहित्य एवं पुरातत्व में पूरा सहयोग लिया था । बाबू जी सदैव सफल व्यापारी रहे । एक लम्बे समय तक आप कलकत्ता की प्रसिद्ध गती ट्रेड एसोसियेशन के प्रमुख सदस्य रहे । इस संस्था के इन सबके अतिरिक्त प्राप दानी, परोपकारी, एवं कर्मठ कार्यकर्ता थे । आपने विभिन्न सामाजिक संस्थाओं को सब मिला कर लाखों रुपये का दान दिया होगा । ग्रापको समाज के नवयुवकों का बड़ा खयाल था । उन्हें मार्ग दर्शन देने तथा व्यवसाय धन्धे में लगाने में पाप सतत् प्रयत्नशील रहते थे । कलकत के बंगाली एवं जैनेतर समाज में भी प्राप विशेष प्रिय थे तथा वहां के प्रतिष्ठित साहित्य सेवियों एवं समाज सेवियों से प्रापका विशेष सम्बन्ध था । प्रापका स्वास्थ्य आपका साथ नहीं देता था और बीमारी चाहे जब श्रापको परेशान करती रहती थी । अस्वस्थ रहने पर भी उत्साह एवं लगन के साथ ग्राप समाज एवं देश की सेवा में व्यस्त रहते थे। ऐसे देश से वी समाज सेवी, साहित्य सेवी, साधक एवं संस्कृति के अनन्य सेवक का स्मरण देश और समाज के लोगों को निश्चय ही प्रेरणा और स्फूर्ति प्रदान करता है । उनके चरणों में श्रद्धा के ये कुछ पुष्प अर्पित हैं । इस पृथ्वी के नीचे बहुत से ऐसे लोग गाड़े गये हैं जिनके अस्तित्व का कोई भी चिन्ह इस दुनियाँ में अब शेष नहीं है। नौशेरवां की वृद्ध लाश को जमीन ने ऐसा खाया कि उसकी एक हड्डी भी अब बाकी नहीं रही मगर उसका नाम आज भी जीवित है । यद्यपि और भी बहुत से मनुष्य इस पृथ्वी पर आये और मर गये। स्वयं नौशेरवा भी नहीं रहा । श्रतः ऐ मनुष्य, यह आवाज आने से पूर्व कि अमुक व्यक्ति मर गया नेकी कर और अपनी उम्र को गनीमत समझ । - शेख सादी
SR No.010079
Book TitleBabu Chottelal Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherBabu Chottelal Jain Abhinandan Samiti
Publication Year1967
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy