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________________ प्रवास्पद बाबू जी साथ भेजी गई थी । बाबू जी के स्नेह और ममता अनेक पूर्वाग्रहों और कदाग्रहों का प्रावरण चीर कर की मिठास का स्वाद उन ग्रामों में हम लोग लेते हमारे प्राचीन वैभव के कलापक्ष की जो मान्यताएं रहे। प्रात्मीयता की यह अथाह गहराई ? सोचता स्थापित हो सकी हैं वे हमारी पीढ़ियों को सीढ़ियों का हैं शब्दों की पतवार के सहारे मे नापना क्या काम देंगी। उनकी निरन्तर और बलवती प्रेरणा से मूर्खता नहीं है ? इस दिशा में टी० एन० रामचन्द्रन् और श्री. सी. शिवराम मूर्ति जैसे कतिपय विद्वानों पूज्य वर्णी जी के अन्त समय में बाबू जी के द्वारा जो साहित्य प्रस्तुत हुआ है वह जैनसाथ मैं भी लगभग बीस दिन वहाँ रहा। इस बीच कला के अनुसन्धान पथ पर प्रकाश स्तम्भ बाबू जी की अनेक विशेषताएं देखने-जानने को बन कर रहेगा। उन्होंने स्वयं भी जो लिखा मिली । वर्णी जो के प्रति उनकी दृढ़ और गहन है वह यद्यपि बहुत अधिक नहीं हैं तथापि उनके भास्था, समाधि-मरण के समय अन्तिम क्षणी सक ज्ञान और अनुभव का परिचायक है । उनके बरी जी की सेवा-सम्हाल, और भारी भीड़ में द्वारा संयोजित "जैन बिबलियोग्राफी" का दूसरा उनकी प्रबन्ध-पटता, बीच बीच में विद्वानों में चर्चा भाग यदि प्रकाणित होकर सामने आ सका तो वह के समय उनका गहन गम्भीर ज्ञान और कतिपय उनकी दीर्घ, एकान्त, मौन साधना का प्रमाण प्रवांछनीय प्रसंगों पर उनका माध्यस्थ तथा हम होगा। वीर सेवा मन्दिर के प्रति उनका मौदार्य सबके प्रति उनकी ममता और अनेक विशेषताओं तथा वीर शासन संघ के प्रति उनकी सेवाएं उनकी का प्रागार उनका सम्मोहक व्यक्तित्व प्रायः प्रत्येक या-पताका का मेरु-दण्ड बनकर बहुत समय तक उस व्यक्ति पर जो बाबू जी के सम्पर्क में पाया. हमारे बीच रहने वाली हैं । वे स्वयं महान थे और एक अमिट छाप छोड़ता है अनेक महान कार्यों का सम्पादन उनके प्रयास से, बाव जो अपने आप में एक सम्पूर्ण संस्था थे। उनके वित्त से और उनकी लगन मे हया है। प्राने जैन पुरातत्त्व की अनगिनत अनजानी निधियों को वाले कलके लिये कुछेक बहत उपयोगी और प्रकाश में लाने की दिशा में उन्होंने जो श्रम-साध्य महत्वपूर्ण योजनाओं की संभावनाएँ अभी उनके साधना की है तथा उस दिशा में उनकी जो उर- सपनों में तैर रही थीं कि कराल काल ने उन्हें हमसे लब्धियां है उनका मूल्यांकन करने के प्रयास प्रभी छीन लिया। हमारी कामना है कि उनके जीवन से प्रारम्भ नहीं हये । देश के वर्तमान गण्यमान्य पूरा- प्रेरणा लेकर हम उनके कार्यान्वयन काशीघ्र ही स्तत्व विशारदों से उनकी घनिष्टता के फलस्वरूप प्रयास करें। - सब लोगों की प्रौचित्य की धारणा एक सी नहीं होती। + घटना का जो पहलू बाहर से दिखाई देता है वही उसका पूर्ण रूप नहीं होता । + विपत्ति में राहगीर को भी प्राश्रय दिया जाता है। -बाबू जी की गायरी से
SR No.010079
Book TitleBabu Chottelal Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherBabu Chottelal Jain Abhinandan Samiti
Publication Year1967
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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