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________________ पंचकल्याणक तिथियों और नक्षत्र भी मिलापचद्रजी कटारिया, केकड़ी पीकरों की पंचकल्याणकतिथियां लंबे उसमें गर्भकल्याणक की तिथियें न होनेसे इसमें भी ॥ प्ररसे से गड़बड़ में चली पा रही हैं। नहीं हैं । इस संभावना की पुष्टि इससे भी होती है इन तिथियों की उपलब्धि के खास स्थान पूजापाठ कि इसही हरिवंशपुराण पर्व १६ में भगवान् के नथ हैं। किंतु संस्कृत में लिखी बीवीसतीर्थकरों मुनिसुव्रत का चरित्र लिखा है वहां उनके कल्याणकों की-पूजायें तो प्रचलित हैं नही, हिंदी पद्यों में रची की जो तिथियें दी हैं वे इसके ६.३ पर्व में दी हुई भाषापूजामों का ही इस समय अधिक प्रचार है। मुनिमुव्रत की कल्याणक तिथियों से नहीं मिलती इन भाषापूजामों में उल्लिखित कई पंचकल्याणक- है। यथातिथियें प्रापसमें एक दूसरे से मिलती नहीं हैं । यह पर्व ६० मेंतो निश्चित है कि भाषापूजामों में दी हुई सिथियों दीक्षातिथि-वैशाखबुद ६ (श्लोक-२२६) के प्राधार कोई प्रचीन संस्कृतप्राकृत के प्रथ रहे ज्ञानतिथि-फागुणबुद ६ (श्लोक-२५७) हैं। इसलिये हम भी प्रकृतविषय में भाषापूजानों को मोक्षतिथि-फागुणबुद १२ (श्लोक-२६७) एक तरफ रखकर इस संबंध के अन्य प्राचीन जन्मतिथि-पासोजसुद १२ (श्लोक-१७५) संस्कृतप्राकृत के ग्रंथोंपर विचार करना उचित समझते हैं। पर्व १६ मेंहमारी जानकारी में इन तिथियों के प्राचीन काती सुद ७ (लोक-१२) मगसरसुद ५ (श्लोक ६४) उल्लेख त्रिलोकप्रशप्ति, हरिवंशपुराण और उत्तर माघसुद १३ (श्लोक-७६) पुराण इन ३ ग्रंथोंमे मिलते हैं । किंतु तीनों ही माघसुद १२ (श्लोक-१२) ग्रंथोंकी कई तिथियें भी आपस में मिलती नहीं हैं। इनमें से त्रिलोकप्राप्ति मौर हरिवंशपुराण में सिर्फ इस प्रकार एक ही प्रकार के एक ही पंचमें चार ही कल्याणकों की तिथियां दी हैं, गर्भकल्या- मुनिसुव्रत के कल्याणकों की भिन्न भिन्न तिथियों एक की तिथियों का कोई उल्लेख ही नहीं है। न का कथन होना विद्वानों के सोचने की चीज है। जाने इसका क्या कारण है । पर हरिवंशपुराण में ऐसा भी है कि उसके ६० वें पर्व में जहां कि तीर्थंकरों हरिवंशपुराण के ६०वें पर्व में जिस प्रकार के अनेक ज्ञातम्य विषयों का विवरण दिया है वहां । सीकरों के अनेक ज्ञातव्य विषयों का विवरण तो गर्भकल्याणक की तिथियों का यतई कथन नहीं दिया है । उसी प्रकार पदमपुराण पर्व २० में भी है। किंतु इसी प्रथमें जहां ऋषभदेव, मुनिसुव्रत, दिया है। किंतु पद्मपुराण में वहां किसी भी नमिनाथ और महावीर इन चार तीर्थकरों का तीयकरको कल्याणक तिथियों का कोई उल्लेख चरित्र लिखा है वहां इन की गर्भकी तिथिये भी ' नहीं है। सिर्फ नक्षत्र दिये हैं। लिसदी हैं। इससे ऐसा जान पड़ता है कि ६ • वे पब हमको यह देखना है कि-कल्याणकों की पर्वका यह कथन जिनसेन ने शायद किसी अन्य प्रथ जो तिथि उक्त तीनों ग्रंथों में भिन्न भिन्न रूप से से प्रर्य रूप से ज्योंका त्यों उदधत किया है। इसलिये पाई जाती हैं। उनमें से कौन तिथि प्रमाण यानी
SR No.010079
Book TitleBabu Chottelal Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherBabu Chottelal Jain Abhinandan Samiti
Publication Year1967
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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