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________________ प्राचीन भारतीय वस्त्र और वेश-भूषा मथुरा कला में प्राप्त सूर्य और उनके पावंचर अंगरक्षक सफेद वारबाण पहने था। १ कादम्बरी दण्ड और पिंगल की वेशभूषा में जो ऊपरी कोट में भी बाणभट्ट ने वारबारण का उल्लेख किया है। है वह वारबाण ही ज्ञात होता है । मथुरा संग्रहालय, चन्दापीड जब शिकार खेलने गया तब उसने वारमूर्ति सं० १२५६ की सूर्य को मूर्ति का कोट उपयुक्त बाण पहन रखा था । मृग-रक्त के सैकड़ों छोटे पड़ने खैरखाना को सूर्य-मूर्ति के कोट जैसा ही है। मृति से उसकी शोभा द्विगुणित हो गयी थी। २ मृगया संख्या ५१३ को पिंगल मूर्ति भी घुटने तक नीचा से लौट कर चन्दापीड परिजनों द्वारा लाये गये कोट पहने है । मथुरा में और भी प्राधी दर्जन मूर्तियों प्रासन पर बैठा और वारबाण उतार दिया। 3 में यह वेशभूषा मिलती है ।६५ उपयुक्त उल्लेखों से यह स्पष्ट हो जाता है कि ___ बारबारण भारतीय वेशभूषा में सासानी ईरान वारवारण केवल जिरह बस्तर के लिये नहीं, बल्कि की वेशभूषा से लिया गया। वारवारण पहलवी शब्द साधारण वस्त्र के लिये भी प्राता था । कौटिल्य के का संस्कृत प है। इसका फारसी रूप “वरबान" । उल्लेखानुसार तो वारबाग ऊनी भी बनते रहे होंगे। प्ररमाइक भाषा में “वरपानक (Varpanak) बागभट्ट को वारबारण की जानकारी हर्ष के दरबार सीरिया की भाषा में इन्हीं से मिलता जुलता में हुई होगी। भारतवर्ष में यह वस्त्र कब से माया, "गुरमानका" (gurmanaka) और अरबी में यह कहना मुश्किल है किन्तु इसके अत्यल्प उल्लेखों "जुरमानकह" (Gurmanaqah रूप मिलते हैं, से लगता है कि वारबारण का प्रयोग राजघरानों जो सब किसी पहलवी मूल शब्द से निकले होने तक ही सीमित रहा । सम्भव है अधिक मंहगा होने चाहियें।८६ से इसका प्रचार जनसाधारण में न हो पाया हो। सोमदेव के उल्लेख से इतना निश्चय अवश्य हो जाता भारतीय साहित्य में चारबाग के उल्लेख कम है कि दशवीं शताब्दी तक भारतीय राज्य-परिवारों मिलते हैं । कौटिल्य ने ऊनी कपड़ों में वारबाण की में वारबाग का व्यवहार होता आया था तथा गणना यी है। ८७ कालीदास ने रघु के योद्धानों को कंचक की तरह वारबाग भी स्त्री-पुरुष दोनों वारवारण पहने हुए बताया है।८८ मल्लिनाथ ने पहनते थे। वारबाग का अर्थ कंचुक किया है। वारणभट्ट ने सेना में सम्मिलित हए कुछ राजाओं को स्तवरक बोलक-चोलक का उल्लेख सोमदेव ने सेनामों के बने वारबारण पहने बताया था।. दधीच का के वर्णन के प्रसंग में किया है । गौण सैनिक पैरों ८४. अग्रवाल-पहिच्छत्रा के खिलौने, चित्र ३०५, पृ० १७३, ऐन्गेण्ट इंडिया ८५. अग्रवाल-हर्षवरितः एक सांस्कृतिक प्रध्ययन, पृ०१५०, फुटनोट ८६ ८६. ट्रांजेक्शन माफ दो फिलोलाजिकल सोसायटी माफ लन्दन, १९४५, पृ० १५४, फुटनोट, हेनिंग । उद्धत, अग्रवाल-हर्षचरितः एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० १५१ ८७. पारबाणः परिस्तोमः समन्तभद्रकं च प्राविकम्, अर्थशास्त्र, २६, ११ ८८. तद्योषवारबारणानाम्, रघुवंश ४।५५ ८६. वारवाणानां कंचुकानाम्, वही, सं० टी. ६०. सारमुक्तास्तवक्तिस्तवरकबारबारश्च, हर्षचरित, पृ. २०६ ६१. धवलवारबारधारिणम्, वही, पृ० २४ १२. मृगरुविरलवशतशवलेन वारबाणेन, कादम्बरी, पृ० २१५ ।
SR No.010079
Book TitleBabu Chottelal Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherBabu Chottelal Jain Abhinandan Samiti
Publication Year1967
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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