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________________ ७४) [ गोम्मटसार जीवकाण्ड वहुरि प्रमाण इस शास्त्र का नानाप्रकार अर्थनि करि अनत है । बहुरि अक्षर गणना करि सख्यात है; जाते जीवकांड का सात से पचीस गाथा सूत्र है। बहुरि नाम-जीवादि वस्तु का प्रकाशने की दीपिका समान है । तातै संस्कृत टीका की अपेक्षा जीवतत्त्वप्रदीपिका है। वहुरि कर्ता इस शास्त्र का तीन प्रकार - अर्थकर्ता, ग्रथकर्ता, उत्तर ग्रंथकर्ता । तहाँ समस्तपने दग्ध कीया धाति कर्म चतुष्टय, तिहकरि उपज्या जो अनन्त ज्ञानादिक चतुष्टयपना, ताकरि जान्या है त्रिकाल संवन्धी समस्त द्रव्य-गुण-पर्याय का यथार्थ स्वरूप जिहै, वहुरि नष्ट भए हैं क्षुधादिक अठारह दोष जाके, वहुरि चौतीस अतिशय, आठ प्रातिहार्य करि संयुक्त, बहुरि समस्त सुरेद्र-नरेद्रादिकनि करि पूजित है चरण कमल जाका, वहुरि तीन लोक का एक नाथ, बहुरि अठारह महाभाषा अर सात सं क्षुद्र भापा, वा संनी सवधी अक्षर-अनक्षर भाषा तिहस्वरूप, अर तालवा, दात, होठ, कठ का हलावना आदि व्यापाररहित, अर भव्य जीवनि की आनन्द का कर्ता, अर युगपत् सर्व जीवनि को उत्तर का प्रतिपादन करनहारा ऐसी जु दिव्यध्वनि, तिहकरि सयुक्त, वहुरि बारह सभा करि सेवनीक, ऐसा जो भगवान श्री वर्द्धमान नीर्थकर परमदेव, सो अर्थकर्ता जानना । ___ बहुरि तिस अर्थ का ज्ञान वा कवित्वादि विज्ञान पर सात ऋद्धि, तिनकरि नपूर्ण विराजमान ऐसा गौतम गणधर देव, सो ग्रथकर्ता जानना । बहुरि तिसही के अनुक्रम का धारक, बहुरि नाही नष्ट भया है सूत्र का अर्थ जाकै, वहुरि रागादि दोपनि करि रहित ऐसा जो मुनिश्वरनि का समूह, सो उत्तर ग्रंथकर्ता जानना । या प्रकार मगलाटि छहोनि का व्याख्यान इहा कीया । ऐसें तीसरा प्रयोजन दृट कीया है। बहुरि तर्फ - जो शास्त्र की प्रादि विष उपकार स्मरण किसे अर्थ करिए है? तहां कहिए है - जो ऐसा न कहना, जातै ऐसा कथन है "श्रेयोमार्गस्य संसिद्धिः प्रसादात्परमेष्ठिनः दन्याहृम्न गुणस्तोत्रं शास्त्रादी मुनिपुगवाः ॥"
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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