SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 628
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ७२१ सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका ] टीका - जो जीव सम्यक्त्व ते पड्या अर मिथ्यात्व को यावत् प्राप्त न भया, तावत् काल सासादन है; असा जानना । सो दर्शन मोह ही की अपेक्षा पांचवां पारणामिक भाव करि संयुक्त है, जातै चारित्र मोह की अपेक्षा अनतानुबंधी के उदय तें सासादन हो है, तातै इहां औदयिक भाव है । यहु सासादन जुदी ही जाति का श्रद्धान रूप सम्यक्त्व मार्गणा का भेद जानना। सद्दहणासदहणं, जस्स य जीवस्स होइ तच्चेसु । विरयाविरयेण समो, सम्मामिच्छो रित पायवो ॥६५॥ श्रद्धानाश्रद्धानं, यस्य च जीवस्य भवति तत्त्वेषु । विरताविरतेन समः, सम्यग्मिथ्या इति ज्ञातव्यः ॥६५५॥ टीका - जिस जीव के जीवादि पदार्थनि विषे श्रद्धान वा अश्रद्धान एक काल विषै होइ, जैसे देशसंयत के संयम वा असंयम एक काल हो है। तैसै होइ, सो जीव सम्यग्मिथ्यादृष्टी है, जैसा जानना। यह सम्यक्त्व मार्गणा का मिश्र नामा भेद कह्या है। मिच्छाइट्ठी जीवो, उवइठें पवयणं ण सद्दहदि । सद्दहदि असब्भावं, उवइळं वा अणुवइठें ॥६५६॥ मिथ्यादृष्टिर्जीवः उपदिष्टं प्रवचनं न श्रद्दधाति । श्रद्दधाति असद्भावं, उपदिष्टं वा अनुपदिष्टम् ॥६५६॥ टीका - मिथ्यादृष्टी जीव जिन करि उपदेशित असे प्राप्त, आगम, पदार्थ, तिनिका श्रद्धान करै नाहीं । बहुरि कुदेवादिक करि उपदेश्या वा अनुपदेश्या झूठा आप्त, आगम, पदार्थ, तिनिका श्रद्धान कर है। यह सम्यक्त्व मार्गणा का मिथ्यात्व नामा भेद कह्या । असे सम्यक्त्व मार्गणा के छह भेद कहे । उपशम, क्षायिक, सम्यक्त्व का विशेष विधान लब्धिसार नामा ग्रंथ विष कह्या है । ताके अनुसारि इहा भाषा टीका विष आगै किछ लिखेगे, तहां जानना। आगे सम्यक्त्व मार्गणा विर्ष जीवनि की संख्या तीन गाथानि करि कहै हैंवासपुधत्ते खइया, संखेज्जा जइ हवंति सोहम्मे । तो संखपल्लठिदिये, केवडिया एवमणुपादे ॥६५७॥
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy