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________________ सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका ] [६७६ बहुरि ताके ऊपरि तैजसशरीरवर्गणा है । ताहिं विषै उत्कृष्ट अग्राह्य वर्गणा तै एक परमाणू अधिक भए, जघन्य भेद हो है । इस जघन्य भेद को सिद्धराशि का अनंतवां भाग मात्र अनंत का भाग दीए, जो प्रमाण आवै, तितने जघन्य ते अधिक भए उत्कृष्ट भेद हो है। बहुरि ताके ऊपरि अग्राह्य वर्गणा है; तीहिं विष उत्कृष्ट तैजस वर्गणा ते एक परमाणू अधिक भए जघन्य भेद हो है । इस जघन्य को सिद्धराशि का अनतवा भागमात्र अनंत करि गुणै उत्कृष्ट भेद हो है। . बहुरि ताके ऊपरि भाषा वर्गणा है; तीहि विष उत्कृष्ट अग्राह्यवर्गणा ते एक परमाणू अधिक भए जघन्य भेद हो है । इस जघन्य को सिद्धराशि का अनंतवा भागमात्र अनंत का भाग दीए, जो प्रमाण आवै, तितने जघन्य ते अधिक भए उत्कृप्ट भेद हो है। बहुरि ताके ऊपरि अग्राह्य वर्गणा है । तीहि विष उत्कृष्ट भाषावर्गणा ते एक परमाणू अधिक भये जघन्यभेद हो है । इस जघन्य को सिद्धराशि का अनतवा भागमात्र अनंत करि गुणै उत्कृष्ट भेद हो है । बहुरि ताके ऊपरि मनोवर्गणा है, तीहिं विष उत्कृष्ट अग्राह्य वर्गणा ते एक परमाणू अधिक भए जघन्य भेद हो है । इस जघन्य को सिद्धराशि का अनंतवा भागमात्र अनंत का भाग दीए, जो प्रमाण आवै, तितने जघन्य ते अधिक भएं उत्कृष्ट भेद हो है। बहुरि ताके ऊपरि अग्राह्य वर्गणा है। तीहिं विष उत्कृष्ट मनोवर्गणा ते एक परमाणू अधिक भए जघन्य भेद हो है । इस जघन्य को सिद्धराशि का अनतवा भाग प्रमाण अनंत करि गुण, उत्कृष्ट भेद हो है । बहुरि ताके ऊपरि कार्माणवर्गणा है; तीहिं विष उत्कृप्ट अग्राह्य वर्गणा ते एक परमाणु अधिक भएं जघन्य भेद हो है । इस जघन्य को सिद्धराशि का अनतवां भागमात्र अनंत का भाग दीएं, जो प्रमाण आवै, तितने जघन्य ते अधिक भएं उत्कृष्ट भेद हो है। , बहुरि ताके ऊपरि ध्रुववर्गणा है, तहां उत्कृष्ट कार्माण वगर्णा ते एक परमाणू अधिक भएं जघन्य भेद हो है। इस जघन्य को अनतगुणा जीव राशिमान अनत करि गुण, उत्कृष्ट भेद हो है।
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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