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________________ [ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाया ५७२-५७३ ववहारो या वियप्पो, भेदो तह पज्जनो ति एयट्ठो। ववहार-बहारम-दिदी हु ववहारकालो दु ॥५७२॥ व्यवहारश्च विकल्पो, भेदस्तथा पर्याय इत्येकार्थः । व्यवहारावस्थानस्थितिहि व्यवहारकालस्तु ॥५७२॥ टीका - व्यवहार पर विकल्प अर भेद पर पर्याय ए सर्व एकार्थ है। इनि शब्दनि का एक अर्थ है । तहा व्यजन पर्याय का अवस्थान जो वर्तमानपना, ताकरि स्थिति जो काल का परिमाण, सोई व्यवहार काल है । अवरा पज्जायठिदी, खणमेत्तं होदि तं च समो त्ति । होण्हमणूणमदिक्कमकालपमाणं हवे सो दु॥५७३॥ अवरा पर्यायस्थितिः, क्षणमात्रं भवति सा च समय इति । द्वयोरण्वोरलिकमकालप्रमाणं भवेत् स तु ॥५७३॥ टीका - द्रव्यनि के जघन्य पर्याय की स्थिति क्षण मात्र है । सो क्षण नाम समय का है । समीप तिष्ठती दोय परमाणू मद गमनरूप परिणई, जेता काल विर्षे परस्पर उल्लघन करै, तिस काल प्रमाण का नाम समय है। इहा प्रसग पाइ दोय गाथा कहै है गभ एय पयेसत्थो, परमाणू मंदगइपवट्टतो। वीयमणंतरखेत्तं, जावदियं जाति तं समयकालो॥१॥ आकाश का एक प्रदेश विर्षे तिष्ठता परमाणू मंदगतिरूप परिणई, सो तिस प्रदेश के अनतरि दूसरा प्रदेश, ताको जेता काल करि प्राप्त होइ, सो समय नामा काल है। सो प्रदेश कितना है ? सो कहै है जेत्ती वि खेत्तमेतं, अणुरणा रुद्धं खु गयरणदव्वं च । तंज पदेसं भरिणयं, अवरावरकारणं जस्स ॥२॥
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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