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________________ परिकर्माfter area प्रकरण ६५५३६ इहा उदाहरण - जैसे वर्गित राशि पैसठ हजार पाच सौ छत्तीस (६५५३६) इहां विषम सम की सहनानी असी करि अन्त का विपम छक्का तार्म तीन का वर्ग तो बहुत होइ जाइ, ताते संभवता दोय का वर्ग च्यारि घटाइ अवशेष दोइ तहां लिखना । अर मूल अंक दूवा जुदा पंक्ति विषें लिखना । बहुरि तिस श्रवशेप सहित आगिला सब अंक ऐसा २५| ताक जुदा लिख्या जो दूवा ताते दूरगा च्यारि का भाग दीए, छह पावे; परंतु श्रागे वर्ग घटावने का निर्वाह नाही; ताते पांच पाया, सो जुदा लिख्या हुआ दूवा के आगे लिखना । श्रर पाया अंक पांच करि भागहार च्यारि को गुणि, भाज्य में घटाएं, पचीस की जायगा पांच रह्या, तिस सहित गिला विषम ऐसा (५५) तामै पाया अंक पाच का वर्ग पचीस घटाए, श्रवशेष ऐसा ३०, तिस सहित आगिला सम ऐसा ३०३, ताकौ जुदे लिखे अंकनि ते दूणा प्रमाण पचास का भाग दीए छह पाया, सो जुदे लिखे अंकनि के आगे लिखना । अर छह करि भागहार पचास की गुरिण, भाज्य में घटाए अवशेष ऐसा ३ रह्या, तिस सहित गिला विषम ऐसा ३६, यामै पाया अंक छह का वर्ग घटाए राशि निःशेष भया । ऐसें जुदे लिखे हुवे अंकनि करि पैसठ हजार पांच से छत्तीस का वर्गमूल दोए से छप्पन आया । ऐसे ही अन्यत्र विधान जानना । ६२ ] हुरि घुमूल विषे घन रूप राशि के अंकनि उपरि पहिला घन, दूजा - तीजा वन चौथा घन, पाचवा छठा अघन ऐसे क्रमते ऊभी आडी लीक रूप सहनानी करनी । जोत का घन अंक न होइ तो अन्त उपांत दोय अंकनि की घन संज्ञा जाननी । ग्रर ते दोऊ घन न होइ तो अन्त ते तीन अंकनि की घन संज्ञा जाननी । तहा एक वा दोय वा तीन अंक रूप जो अन्त का घन, तामै जाका घन संभवै ताका धन करि ताक अंत का घन अकरूप प्रमाण में घटाइ अवशेष तहां लिखना । अर जाका घन कीया था, तिस मूल अंक को जुदा पंक्ति विषे स्थापना । बहुरि तिस अवशेष सहित अगिला अंक कौं तिस मूल अंक के वर्ग ते तिगुणा भागहार का भाग देना जो अंक पावै, ताकौं जुदा लिख्या हुवा अंक के श्रागे लिखना । अर पाया अक करि भागहार की गुणी, भाज्य मे घटाइ अवशेष तहां लिखि देना । वहुरि इस अवशेष महित नागिला अंक, ताविषे पाया अंक के वर्ग को पूर्व पंक्ति विषे तिष्ठते अवनि करि गुणं, जो प्रमाण होइ, ताकी तिगुणा करि घटाइ देना । अवशेष तहां गिना | बहरि इस अवशेष सहित आगिला अंक विषै तिस ही पाया अक का घन | बहुरि श्रवशेष सहित यागिला अंक को जुदा लिखि अंकनि के प्रमा
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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