SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 526
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५६ ] [ गोम्मटसार जीत्रकाण्ड गाथा ५.१८ गति अधिकार ग्यारह सूत्रनि करि क है है । BRE लेस्सारणं खलु असा, छव्वीसा होंति तत्थ मज्झिमया । आउगबंध रणजोग्गा, श्रट्ठट्ठवगरिसकालभवा ॥५१८ || श्यानां खलु अंशाः, षड्विंशतिः भवन्ति तत्र मध्यमकाः । श्रायुष्कबन्धनयोग्या, अष्ट अष्टापकर्षकालभवाः ॥५१८ || मध्यम, अश टीका - लेश्यानि के छब्बीस अंश हैं । तहां छहौं लेश्यानि के जघन्य, उत्कृष्ट भेद करि अठारह अंश हैं । बहुरि कपोतलेश्या के उत्कृष्ट अश तै आगे अर तेजोलेश्या के उत्कृष्ट अंश ते पहिले कषायनि का उदय स्थानकनि विपै आठ मध्यम अंश है, जैसे छब्बीस अंश भए । तहां प्रयुकर्म के बध कौ योग्य आठ मध्यम जानने । तिनका स्वरूप आगे स्थानसमुत्कीर्तन अधिकार विषै भी कहेगे । ते ग्राठ मध्यम अंश, अपकर्ष काल आठ, तिनि विषै संभव है । वर्तमान जो भुज्यमान आयु, ताकौ अपकर्ष, अपकर्ष कहिए । घटाइ घटाइ आगामी पर भव की आयु को बांध; सो श्रपकर्ष कहिए । अपकर्षन का स्वरूप दिखाइए है - तहां उदाहरण कहिए है - किसी कर्म भूमिया मनुष्य वा तिर्यंच की भुज्यमान आयु पैसठ से इकसठ (६५६१) वर्ष की है । तहां तिस आयु का दोय भाग गएं, इकईस से सित्तासी वर्ष रहे । तहां तीसरा भाग कौ लागते ही प्रथम समय स्यों लगाइ अंतर्मुहूर्त पर्यंत कालमात्र प्रथम अपकर्ष है । तहा परभव सबधी आयु का बंध होइ । बहुरि जो तहा न बधै तौ, तिस तीसरा भाग का दोय भाग गएं, सात से गुणतीस वर्ष आयु के अवशेष रहै, तहा अतर्मुहूर्त काल पर्यंत दूसरा अपकर्ष, तहां परभव की आयु बांधे । बहुरि तहा भी न बंधे ती तिसका भी दोय भाग गएं दोय सँ तियालीस वर्ष आयु के अवशेष रहै, अंतर्मुहूर्त काल मात्र तीसरा अपकर्षं विषै परभव का आयु बाधै । बहुरि तहां भी न बधै तौ, तिसका भी दोय भाग गएं इक्यासी वर्ष र, अंतर्मुहूर्त पर्यंत चौथा अपकर्ष विषै पर भव का आयु बाधै । जैसे ही दोय दोय भाग गए, सत्ताईस वर्ष रहे वा नव वर्ष रहै वा तीन वर्ष रहै वा एक वर्ष रहै अतर्मुहूर्तमात्र काल पर्यंत पांचवां वा छठा वा सातवां वा १ पट्खडागम - घवला पुस्तक १, पृष्ठ ३६२, गाथा स २०६ ।
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy