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________________ ५८६ ] [ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ४९१-४९२-४९३ दोऊनि का कार्य च्यारि प्रकार बन्ध कह्या है । योगनि ते प्रकृत्ति वन्ध र प्रदेश बन्ध कह्या है । कषायनि ते स्थिति बन्ध अर अनुभाग बंध कह्या है | तिसही कारण कषायनि का उदय करि अनुरंजित योगनि की प्रवृत्ति, सोई है लक्षण जाका सें लेश्या करि च्यारि प्रकार बंध युक्त ही है । दोय गाथानि करि लेश्या का प्ररूपण विषै सोलह अधिकार कहै हैणिदेसवण्णपरिणामसंकमो कम्मलक्खणगदी य । सामी साहणसंखा, खेत्तं फासं तदो कालो ॥४६१॥ अंतरभावप्पबहु, अहियारा सोलसा हवंति त्ति । लेस्साण साहणट्ठ, जहाकमं तेहि वोच्छामि ॥४६२॥ जुम्मम् । निर्देश वर्णपरिणामसंक्रमाः कर्म लक्षरणगतयश्च । स्वामी साधनसंख्ये, क्षेत्रं स्पर्शस्ततः कालः ।।४९१ ।। अंतरभावात्पबहुत्वमधिकाराः षोडश भवतीति । श्यानां साधनार्थ, यथाक्रमं तैर्वक्ष्यामि ॥४९२॥ युग्मम् ॥ टीका १ निर्देश, २ वर्ण, ३ परिणाम, ४ संक्रम, ५ कर्म, ६ लक्षण, ७ गति, ८ स्वामी, साधन, १० संख्या, ११ क्षेत्र, १२ स्पर्शन, १३ काल, १४ अंतर, १५ भाव, १६ अल्प बहुत्व ए सोलह अधिकार लेश्या के भेदसाधन के निमित्त है । तिन करि अनुक्रम ते लेश्यामार्गणा को कहै है । किण्हा णीला काऊ, तेऊ पम्मा य सुक्कलेस्सा य । लेस्साणं णिद्देसा छच्चेव हवंति नियमेण ॥४६३॥ कृष्णा नीला कापोता तेजः पद्मा च शुक्ललेश्या च । लेश्यानां निर्देशाः, षट् चैव भवंति नियमेन ॥४९३॥ टीका - नाम मात्र कथन का नाम निर्देश है । सो लेश्या के ए छह नाम है - कृष्ण, नील, कपोत, पीत, पद्म शुक्ल जैसे छह ही है । इहां एव शब्द करि तो नियम आया ही, वहुरि नियमेन अंसा कह्या, सो नैगमनय करि छह प्रकार लेश्या है । पर्यायार्थिक नय करि असंख्यात लोकमात्र भेद है, जैसा अभिप्राय नियम शब्द करि जानना । इति निर्देशाधिकारः ।
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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