SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 494
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५६२ ] [ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ८४१ टीका - विपुलमति ज्ञान भी छह प्रकार है - १. ऋजुमन की प्राप्त भया ग्रर्थ का जानन हारा, २ ऋजु वचन कौं प्राप्त भया अर्थ का जानन हारा, ३. ऋजु काय की प्राप्त भया अर्थ का जानन हारा, ४. बहुरि वक्र मन कौं प्राप्त भया श्रर्थं का जानन हारा, ५. बहुरि वक्र वचन को प्राप्त भया अर्थ का जानन हारा, ६. बहुरि वक्र काय प्राप्त भया अर्थं का जानन हारा । ए छह भेद है, जाते सरल वा वक्र मन, वचन, काय को प्राप्त भया पदार्थ कौं जाने है । बहुरि तिन ऋजुमति विपुलमति ज्ञान के अर्था: कहिए विषय ते शब्द कौं अर्थ प्राप्त भए प्रगट हो हैं । कैसे ? सो कहिए है - कोई भी सरल मन करि निष्पन्न होत संता त्रिकाल संबंधी पदार्थनि कौ चितवन भया, वा सरल वचन करि निष्पन्न होत संता, तिनकों कहत भया वा सरल काय करि निष्पन्न होत संता तिनक करत भया, पीछे भूलि करि कालांतर विषे यादि करने कौं समर्थ न हूवा र ग्राय करि ऋजुमति मन पर्यय ज्ञानी को पूछत भया वा यादि करने का अभिप्राय कौं धारि मौन ही ते खड़ा रह्या, तौ तहां ऋजुमति मन:पर्ययज्ञान स्वयमेव सर्व कौं जाने है | तैसें ही सरल वा वक्र मन, वचन, काय करि निष्पन्न होत संता त्रिकाल संबंधी पदार्थनि को चितवन भया वा कहत भया वा करत भया । बहुरि भूलि करि केतेक काल पीछे यादि करने को समर्थ न हूवा, आय करि विपुलमति मन:पर्ययज्ञानी के निकट पूछत भया वा मौन ते खडा रह्या, तहा विपुलमति मन:पर्ययज्ञान सर्व कौं जाने, जैसे इनिका स्वरूप जानना । aियकालविरूव, चितितं वट्टमाणजीवेरण | उजुमविणारणं जाणदि, भूदभविस्सं च विउलमदी ||४४१ ॥ त्रिकालविषयरूप, चितितं वर्तमानजीवेन । ऋजुमतिज्ञानं जानाति, भूतभविष्यच्च विपुलमतिः ॥ ४४१ ॥ टीका - त्रिकाल सबंधी पुद्गल द्रव्य को वर्तमान काल विषै कोई जीव चितवन करें है, तिस पुद्गल द्रव्य को ऋजुमति मन पर्ययज्ञान जाने है । बहुरि त्रिकाल सबंधी पुद्गल द्रव्य की कोई जीव अतीत काल विषे चिंतया था वा वर्तमान काल विपचित है वा अनागत काल विषै चितवेगा, जैसे पुद्गल द्रव्य क विपुलमति मन पर्ययज्ञान जानें है ।
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy