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________________ ५३४ ] [ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ३९० कथन उस कथन विषे कुछ अन्यथापना नाही है । ऊपर ते कथन कीया तव ध्रुवहार का गुणकार कहते आए, नीचे ते कथन कीया तब ध्रुवहार का भागहार कहते पाए, प्रमाण दोऊ कथन विषै एकसा है। देशावधि के द्रव्य की अपेक्षा केते भेद हैं ? ते कहिए है - अंगुलअसंखगुणिदा, खेत्तवियप्पा य दवभेदा हु। खैत्तवियप्पा अवरुक्कस्सविसेसं हवे एत्थ ॥३६०॥ अंगुलासंख्यगुणिताः, क्षेत्रविकल्पाश्च द्रव्यभेदा हि । क्षेत्रविकल्पा अवरोत्कृष्टविशेषो भवेदत्र ॥३९०॥ टीका - देशावधिज्ञान का विषयभूत क्षेत्र की अपेक्षा जितने भेद है, तिनकौं अंगुल का असंख्यातवा भाग करि गुणें, जो प्रमाण होइ, तितना देशावधिज्ञान का विषयभूत द्रव्य की अपेक्षा भेद हो है । ते क्षेत्र की अपेक्षा केते भेद हैं ? ते कहिए है - देशावधिज्ञान का जघन्य क्षेत्र का जो प्रदेशनि का प्रमाण है, तितना भेद देशावधि का उत्कृष्ट क्षेत्र के प्रदेशनि का प्रमाण विष घटाए, जो अवशेष प्रमाण रहै, तितना भेद देशावधि की क्षेत्र की अपेक्षा है । इनिको सूच्यंगुल का असंख्यातवां भाग करि गुरिणए, तामै एक मिलाएं, जो प्रमाण होइ, तितना देशावधि का द्रव्य की अपेक्षा भेद है । काहेत ? सो कहिए है - देशावधि का जघन्य भेद विर्षे पूर्वं जो द्रव्य का परिमाण कहा था, ताको ध्र वहार का भाग दीए, जो प्रमाण होइ सो देशावधिका द्रव्य की अपेक्षा दूसरा भेद है । बहुरि इस दूसरा भेद विषै क्षेत्र का परिमाण तितना ही है। ___ भावार्थ - देशावधि का जघन्य ते बधता देशावधिज्ञान होइ, तौ देशावधि का दूसरा भेद होइ; सो जघन्य करि जो द्रव्य जानिए था, ताको ध्र व भागहार का भाग दीएं, जो सूक्ष्म स्कंधरूप द्रव्य होइ, ताकौं जाने पर क्षेत्र की अपेक्षा जितना क्षेत्र को जघन्यवाला जाने था, तितना ही क्षेत्र कौं दूसरा भेदवाला जाने है । तातै द्रव्य की अपेक्षा दूसरा भेद भया । क्षेत्र की अपेक्षा प्रथम भेद ही है । बहुरि जो द्रव्य की अपेक्षा दूसरा भेदवाला जानै था, ताकौ ध्र वहार का भाग दीए, जो सूक्ष्म
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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