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________________ ४७६ ] [ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ३३१ एक सौ बारा गुणा छप्पन का भागहार हो है । इहां गुणकार विष इकतालीस इकतालीस परस्पर गुणे, सोलह सै इक्यासी भये है । बहुरि भागहार विपै छप्पन को दोय करि गुणे, एक सौ बारह भये । अगले छप्पन को एक करि गुणे, छप्पन भये जानने । बहुरि इहां गुणाकार मे एक जुदा स्थापिये, ताका साधिक जघन्य को एक सौ बारह गुणा छप्पन का भागहार मात्र घन जानना । अवशेष साधिक जघन्य को सोलह सै अस्सी का गुणकार एक सौ बारा गुणा छप्पन का भागहार रह्या । तहां एक सौ बारह करि अपवर्तन कीये साधिक जघन्य को पंद्रह का गुणकार छप्पन का भागहार भया । यामै प्रक्षेपक संबंधी प्रमाण जघन्य को इकतालीस का गुणकार अर छप्पन का भागहार मात्र मिलाएं अपवर्तन कीए, साधिक जघन्य मात्र वृद्धि का प्रमाण भया । यामै मूल साधिक जघन्य जोडै, लब्ध्यक्षर ज्ञान दूणा हो है । इहां प्रक्षेपक - प्रक्षेपक सबंधी पूर्वोक्त घन ते ऋण संख्यात गुणा घाटि है । तातै किचित् ऊन कीया, जो घन राशि, ताको अधिक कीए साधिक दूणा हो है । बहुरि 'सत्त दशमं च भाग' वा कहिए अथवा सख्यात (भाग) वृद्धि संयुक्त उत्कृष्ट सख्यात मात्र स्थानकनि की दश का भाग दीजिये । तहां सात भाग मात्र स्थान भए। तहां प्रक्षेपक पर प्रक्षेपक - प्रक्षेपक अर पिशुलि नामा तीन वृद्धि जोडे, साधिक जघन्य ज्ञान दूणा हो है । कसै? सो कहिए है - साधिक जघन्य को एक बार उत्कृष्ट संख्यात का भाग दीये प्रक्षेपक हो है । सो गच्छ मात्र है । ताते याको उत्कृष्ट संख्यात का सात दशवां भाग करि गुणै, उत्कृष्ट सख्यात का भाग दीएं, साधिक जघन्य को सात का गुणकार अर दश का भागहार हो है । बहुरि प्रक्षेपक - प्रक्षेपक एक घाटि गच्छ का एक बार सकलन घनमात्र हो है । सो साधिक जघन्य को दोय बार उत्कृष्ट संख्यात का भाग दीएं, प्रक्षेपक - प्रक्षेपक होइ, ताको पूर्व सूत्र के अनुसारि एक घाटि सात गुणा उत्कृष्ट सख्यात का अर सात गुणा उत्कृष्ट संख्यात का तौ गुणकार अर दश दोय अर दश एक का भागहार भया । बहुरि पिशुलि दोय घाटि गच्छ का अर दोय बार संकलन घनमात्र हो है । सो साधिक जघन्य को तीन बार उत्कृष्ट संख्यात का भाग दीए पिशुलि हो है । ताको पूर्व सूत्र के अनुसारि दोय घाटि सात गुणा उत्कृष्ट संख्यात पर एक घाटि सात गुणा उत्कृष्ट संख्यात सातगुणा उत्कृष्ट सख्यात का तो गुणकार अर दश तीन, दश दोय, दश एक का भागहार भया । इनि विष पिशुलि का गुणकार विपै दोय घटाया था, तीहि सबधी प्रथम ऋण का प्रमाण साधिक
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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