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________________ [ गोग्गटसार जीवकाण्ड गाया ३२८ ४७० ] आदि स्थान कहा है । बहुरि जैसे पहिले षट्स्थानपतित वृद्धि का क्रम कह्या, ताको पूर्ण करि दूसरा तैसे ही फेरि षट्स्थानपतित वृद्धि होइ जैसे ही तीसरा होइ । इत्यादि असख्यात लोक वार षट्स्थान हो है । तिनिविर्षे छही वृद्धि पाइये है । अनंत गुणवृद्धि रूप तौ पहिला ही स्थान होइ । पीछे क्रमते पाच वृद्धि, अंत की अनंत भागवृद्धि पर्यत होइ । बहुरि जो अनंत भागादिक सर्व वृद्धि कही, तिन सवनि का स्थान प्रमाण सदृश सूच्यंगुल का असंख्यातवा भाग मात्र जानना । तातें जो वृद्धि हो है; सो अगुल का असंख्यातवां भाग प्रमाण वार हो है । छट्ठाणाणं आदी, अट्ठक होहि चरिममुव्वंकं । जम्हा जहण्णरणाणं, अट्ठकं होदि जिणदिळें ॥३२८॥ षट्स्थानानामादिरष्टांकं भवति चरभमुर्वकम् । यस्माज्जघन्यज्ञानमष्टांकं भवति जिनह (दि)ष्टं ॥३२८॥ टोका - षट्स्थानपतित वृद्धिरूप स्थाननि विर्ष अष्टांक कहिये; अनंतगुणवृद्धि सो आदि है । बहुरि उर्वकं कहिये अनंत भागवृद्धि; सो अतस्थान है । भावार्थ - पूर्वं जो यंत्रद्वार करि वृद्धि का विधान कहा, सो सर्व विधान होइ निवरै, तब एक बार षट्स्थानपतित वृद्धि भई कहिए । विशेष इतना जो नवमी पकतिका का नवमा कोठा विषै दोय उकार पर एक आठ का अंक लिख्या है। सो ताका अर्थ यहु जो सूच्यगुल का असंख्यातवा भाग प्रमाण अनत भाग वृद्धि होइ करि एक वार अनतगुण वृद्धि हो है । सो यहु अनतगुण वृद्धि रूप जो भेद सो नवीन पट्स्थानपतित वृद्धि का आरम्भ कीया । ताका ग्रादि का स्थान जानना। इसतै लगाइ प्रथम कोठादिक सबधी जो रचना कही थी, तीहि अनुक्रमतै षट्स्थानपतित वृद्धि हो है । तहां उस ही नवमी पकति का नवमां कोठा विषै आठ का अंक के पहिली जो उकार लिखा था, ताका अर्थ यहु जो सूच्यगुल का असख्यातवां भाग मात्र वार अनंत भागवृद्धि भई, तिनिविषे अंत की अनत भागवृद्धि लीए, जो स्थान सोई, इस षट्स्थानपतित वृद्धि का अंत स्थान जानना । याहीतै षट्स्थान पतित वृद्धि का आदि स्थान अष्टांक कह्या अर अतस्थानक उर्वक कह्या है । बहुरि पहिली वार अनतगुण वृद्धि बिना पच वृद्धि कही, पर पीछे छहौ वृद्धि कही है। यहां प्रश्न - जो पहिली बार आदि स्थान जघन्य ज्ञान है । ताकी अष्टांक रूप अनंत गुणवृद्धि संभव भी है कि नाही?
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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