SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 416
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६४ ! | गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ३२६ स्थापने । प्रक्षेपकप्रक्षेपक एक घाटि गच्छ का एक बार संकलन धनमात्र स्थापमे । पिशुलि नोय घाटि गच्छ का, दोय बार सकलन धनमात्र स्थापने । पिशुलिपिशुलि तीन घाटि गच्छ का, तीन बार सकलन धनमात्र स्थापने । चूर्णि च्यारि घाटि गच्छ का च्यारि बार सकलन धनमात्र स्थापने । चूणिचूरिंग पांच घाटि गच्छ का, पाच बार संकलन धनमात्र स्थापने । जैसे ही क्रम ते एक एक घाटि गच्छ का एक एक अधिक बार सकलन मात्र चूरिंगचूरिंग ही अंत पर्यत जानने । तहां अनंत भगं - वृद्धि युक्त स्थाननि विषे अंत का जो स्थान, तीहि विषे जघन्य तौ ऊपरि स्थापना । ताके नीचे नीचे सूच्यंगुल का असंख्यातवां भाग प्रमाण प्रक्षेपक स्थापने । एक घाटि सूच्यगुल का असंख्यातवां भाग का एक बार सकलन धनमात्र प्रक्षेपक प्रक्षेपक स्थापने । दोय घाटि सूच्यंगुल का असंख्यातवा भाग का दोय बार सकलन धनमात्र पिशुलि स्थापने । तीन घाटि सूच्यंगुल का प्रसंख्यातवां भाग का तीन बार संकलन धनमात्र पिशुलिपिशुलि स्थापने । च्यारि घाटि सूच्यगुल का असंख्यातवां भाग की, च्यारि बार सकलन धनमात्र चूरिंग स्थापने । पांच घाटि सूच्यंगुल का असंख्यातव भाग का पाच बार संकलन धनमात्र चूरिंगचूरिंग स्थापने । याही प्रकार नीचे नीचे चूणिचूरिंग छह आदि घाटि, सूच्यंगुल का असख्यातवां भाग का छह आदि बार सकलन धनमात्र स्थापने । तहां द्विचरम चूणिचूरिंग दोय का दोय घाटि सूच्यंगुल का असंख्यातवां भाग बार सकलन धनमात्र स्थापन करने । बहुरि अत का चूरिंगचूरिंग एक का एक घाटि सूच्यगुल का असख्यातवां भाग बार संकलन धनमात्र स्थापन करना । परमार्थ ते अत चूणिचूरिंग का सकलन धन नाही है; जाते द्वितीयादि स्थान का अभाव है । याही जायगा ( एक ही जायगा ) अत चूणिचूरिंग का स्थापन करना । जैसे वृद्धि का अनुक्रम जानना । बहुरि इहा षट्स्थान प्रकरण विषे अनत भागवृद्धि युक्त स्थाननि के कहे जे भेद, तिनि विषै सर्वत्र प्रक्षेपक तो गच्छमात्र है, जेथवा भेद होइ तितने तहा प्रक्षेपक स्थापने; ताते सुगम है । वहुरि प्रक्षेपक प्रक्षेपक आदिकनि का प्रमाण एक बार, दोय बार आदि संकलन धन का विधान जाने बिना जान्या न जाय, ताते सो सकलन धन का विधान कहिए है - जितने का सकलन धन कह्या होय, तितनी जायगा जैसे अक स्थापि, जोडने । जैसे छठा स्थान विषै दोय घाटि गच्छ का संकलन धन कह्या, तहां च्यारि जायगा या प्रकार अक स्थापि, जोडने । कैसे अक स्थापि जोडिये ? सो कहिये है - जितने का
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy