SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 407
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटोका : । ४५५ बहुरि तिसही के अचक्षुदर्शनावरण के क्षयोपशम ते उपज्या जघन्य अचक्षुदर्शन भी हो है । सो इहां बहुत क्षुद्रभवरूप पर्याय के धरने ते उत्पन्न भया बहुत सक्लेश, ताके बधने करि आवरण का अति तीव्र अनुभाग का उदय हो है। तातै क्षुद्रभवनि का अंत क्षुद्रभवनि विष पर्यायज्ञान कह्या है । बहुरि द्वितीयादि समयनि विष ज्ञान बधता संभव है; तातै तीनि वक्र विर्षे प्रथम वक्र का समय ही विष पर्यायज्ञान कह्या है । सुहमणिगोदअपज्जत्तयस्स जादस्स पढमसमयम्हि । फासिदियगदिपुव्वं, सुदणाणं लद्धिअक्खरयं ॥३२२॥ सूक्ष्मनिगोदापर्याप्तकस्य जातस्य प्रथमसमये । स्पर्शनेंद्रियमतिपूर्व श्रुतज्ञानं लब्ध्यक्षरकं ॥३२२॥ टीका - सूक्ष्म निगोद लब्धि अपर्याप्तक जीव के उपजने का पहिला समय विष सर्व ते जघन्य स्पर्शन इंद्रिय संबधी मतिज्ञानपूर्वक लब्धि अक्षर है, दूसरा नाम जाका, असा पर्याय ज्ञान हो है । लब्धि कहिए श्रुतज्ञानावरण का क्षयोपशम, वा जानन शक्ति, ताकरि अक्षरं कहिए अविनाशी, सो असा पर्यायज्ञान ही है, जातै इतना क्षयोपशम सदाकाल विद्यमान रहै है। आगै दश गाथानि करि पर्यायसमास ज्ञान को प्ररूप है । अवरुवरिस्मि अरणंतमसंखं संखं च भागवड्ढीए। संखमसंखमणंतं, गुणवड्ढी होंति हु कमेण ॥३२३॥ अवरोपरि अनंतमसंख्यं संख्यं च भागवृद्धयः । सख्यमसंख्यमनंतं, गुणवृद्धयो भवंति हि क्रमेण ॥३२३॥ टीका - सर्व ते जघन्य पर्याय नामा ज्ञान, ताके ऊपरि आगे अनुक्रम ते आगे कहिए है । तिस परिपाटी करि १. अनंत भागवृद्धि, २. असख्यात भागवृद्धि, ३. संख्यात भागवृद्धि, ४ संख्यात गुणवृद्धि, ५ असख्यात गुणवृद्धि, ६ अनतगुण वृद्धि, ७. ए षट्स्थान पतित वृद्धि हो है ।। १ षट्खडागम - धवला पुस्तक ६, पृष्ठ २२ की टीका । २ पट्खडागम -धवला पुस्तक, पृष्ठ २२ को टीका
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy