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________________ ४४० ] [ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ३०४ बहुरि हाथी, ऊंट आदि के पकड़ने निमित्त खाडा के ऊपरि गाठि का विशेष लीएं जेवरा की रचनारूप विशेष, सो बंध कहिए । आदि शब्द करि पंखीनि का पांख लगने निमित्त ऊंचे दड के ऊपर चिगटास लगावना, सो बंध वा हरिणादिक का सींग के अग्रभाग सूत्र की गांठ देना इत्यादि विशेष जानने । असें जीवनि के मारणे, बांधने के कारणरूप कार्यनि विषै अन्य के उपदेश विना ही स्वयमेव बुद्धि प्रवर्ते; सो कुमति ज्ञान कहिए । उपदेश ते प्रवर्तें तो कुश्रुत ज्ञान हो जाइ । ताते विना ही उपदेश सा विचाररूप विकल्प लीएं हिसा, अनृत, स्तेय, ब्रह्म, परिग्रह का कारण आर्तरौद्र ध्यान को कारण शल्य, दंड, गारव आदि अशुभोपयोगों का कारण जो मन, इंद्रिय करि विशेष ग्रहणरूप मिथ्याज्ञान प्रवर्ते; सो मति प्रज्ञान सर्वज्ञदेव कहै है । आभीयमासुरक्खं, भारह- रामायणादि-उवएसा । तुच्छा असाहणीया, सुय अण्णाणं त्ति णं बेंति ॥ ३०४ ॥ १ श्राभीतमासुरक्षं भारतरामायणाद्युपदेशाः । तुच्छा प्रसाधनीयाः श्रुताज्ञानमिति इदं ब्रुवंति ॥ ३०४ || टीका - श्राभीता: कहिए ( समतपने ) भयवान, जे चौरादिक, तिनिका शास्त्र सो आभीत है । बहुरि असु जे प्रारण, तिनिंकी चौरादिक ते रक्षा जिनि तै होइ, असे कोटपाल, राजादिक, तिनिका जो शास्त्र सो असुरक्ष हैं । बहुरि कौरव पांडवो का युद्धादिक वा एक भार्या के पंच भर्ता इत्यादिक विपरीत कथन जिस विषै पाइए, असा शास्त्र सो भारत है । बहुरि रामचंद्र के बानरो की सेना, रावण राक्षस है, तिनिका परस्पर युद्ध होना इत्यादिक' अपनी इच्छा करि रच्या हुवा शास्त्र, सो रामायण है | आदि शब्द ते जो एकातवाद करि दूषित अपनी इच्छा के अनुसारि रच्या हुवा शास्त्र, जिनिविषे हिसारूप यज्ञादिक गृहस्थ का कर्म है, जटा धारण, त्रिदड धारणादिरूप तपस्वी का कर्म है, सोलह पदार्थ है; वा छह पदार्थ है; वा भावन, विधि, नियोग, भूत ए च्यारि है; वा पचीस तत्त्व है; वा अद्वैत ब्रह्म का स्वरूप है वा सर्व शून्य है इत्यादि वर्णन पाइए है; ते शास्त्र 'तुच्छा:' कहिए परमार्थ १. पट्टागम - घवला पुस्तक १, गाथा १५०, पृष्ठ ३६० ।
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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