SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 391
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४३४ ] [ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा २६८ जीवनि की संख्या 'बहु भागे समभागो' इत्यादि गाथा करि कही थी । तैसे इहां भी संख्या का साधन करना । सोई कहिये है - मनुष्यगति विषै जो जीवनि का परिमाण है, ता कषाय रहित मनुष्यनि का प्रमाण घटाए, जो श्रवशेष रहे, ताकौं ग्रावली का असंख्यातवां भाग का भाग दीएं, तहा एक भाग जुदा राखि, अवशेष बहुभाग का प्रमाण रह्या, ताके च्यारि भाग करि च्यार्यों कषायनि के स्थाननि विपैं समान देने । बहुरि जो एक भाग रह्या, ताकौ प्रावली का असंख्यातवां भाग का भाग दीजिए, तहा एक भाग को जुदा राखि, अवशेष बहुभाग रहे, तिनिको लोभ कपाय के स्थान समान भाग विषे जो प्रमाण था, तामे जोडै, जो परिमाण होइ, तितने लोभकषाय वाले मनुष्य जानने । बहुरि तिस अवशेष एक भाग को आवली का असंख्यातवां भाग का भाग दीजिए, तहां एक भाग को जुदा राखि, अवशेष बहुभाग रहे, तिनको माया कषाय के स्थान समान भाग विषे जो परिमाण था, तामैं मिलाएं, जो परिमाण होइ, तितने मायाकषाय वाले मनुष्य जानने । बहुरि तिस अवशेष एक भाग को आवली का असंख्यातवां भाग का भाग दीजिए, तहां एक भाग की जुदा राखि, अवशेष बहुभाग रहे, तिनिको क्रोधकषाय के स्थान समान भाग विषै जो परिमाण था, तिस विषै मिलाएं, क्रोधकषाय वाले मनुष्यनि का परिमाण होइ । बहुरि तिस अवशेष एक भाग का जेता परिमाण होइ, ताको मानकषाय के स्थान समान भाग विषै जो परिमाण था, तामै मिलाएं, मानकषाय वाले मनुष्यनि का परिमाण होइ, से ही तिर्यच गति विषे जानना । विशेष इतना जो वहां मनुष्य गति के जीवनि का परिमाण विषे भाग दीया था । इहां तिर्यच गति के जीवनि का जो देव, नारक, मनुष्यराशि करि होन सर्व संसारी जीवराशि मात्र परिमारण, ताकौं भाग देना; अन्य सर्व विधान तैसे ही जानना । से कषायनि विषै तिर्यच जीवनि का परिमाण जानिए | अथवा अपना-अपना कषायनि का काल की अपेक्षा जीवनि की संख्या जानिए, सो दिखाइए है । च्यार्यौ कषायनि का काल के समयनि का जो अंतर्मुहूर्त मात्र परिमाण है, ताको प्रावली का प्रसंख्यातवां भाग का भाग दीजिए । तहा एक भाग को जुदा राखि, अवशेष के च्यारि भाग करि, च्यारो जायगा समान दीजिए । बहुरि अवशेष एक भाग कौ प्रावली का असख्यातवा भाग का भाग देइ, एक भाग कौं जुदा राखि, अवशेष बहुभाग रहे, तिनिको समान भाग विषे जो परिमाण था, तामें मिलाए, लोभकषाय के काल का परिमाण होइ । बहुरि तिस अवशेष एक भाग को तैसे भाग देइ, एक भाग बिना अवशेष बहुभाग समान भाग का प्रमाण विषै मिलाएं, माया का काल होइ । बहुरि तिस अवशेष एक भाग की तैसे भाग
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy