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________________ सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका पीठिका ] [ ४१ का विधान विषै ध्रुवोदयी आदि प्रकृतिनि का वर्णन करि तिन पंचकालनि की अपेक्षा लीए जिस-जिस प्रकार वीस प्रकृति रूप स्थान ते लगाय संभवते नाम के उदयस्थाननि का, श्रर तहां प्रकृति बदलने करि संभवते भंगनि का वर्णन है । बहुरि नाम के सत्त्वस्थाननि का वर्णन विषै तिराणवे प्रकृतिरूप स्थान श्रादि जैसे जै सत्त्वस्थान है तिनका, अर तहां जिन प्रकृतिनि की उद्वेलना हो है तिनके स्वामी वा क्रम वा कालादिक विशेष का, अर सम्यक्त्व, देशसंयम, अनंतानुबंधी का विसंयोजन, उपशमश्रेणी चढना, सकलसंयम धरना, ए उत्कृष्टपने केती वार होइ तिनका, अर च्यारि गति की अपेक्षा लीए गुणस्थाननि विषै जे सत्त्वस्थान संभव तिनका, अर इकतालीस जीवपदनि विषै सत्त्वस्थान संभवै तिनका वर्णन है । बहुरि त्रिसंयोग विषै स्थान वा भंगनि का वर्णन है । तहा मूल प्रकृतिनि विषै जिस-जिस बंधस्थान होते जो-जो उदय वा सत्त्वस्थान होइ ताका, अर ते गुणस्थाननि विषे जैसे संभवे ताका वर्णन है । बहुरि उत्तर प्रकृतिनि विषै ज्ञानावरण, अतराय का तो पांच-पांच ही का बंध, उदय, सत्त्व होइ; तातै तहां विशेष वर्णन नाही । अर दर्शनावरण विषै जिस-जिस बधस्थान होते जो-जो उदय वा सत्त्वस्थान गुणस्थान अपेक्षा संभव ताका वर्णन है, अर वेदनीय विषे एक-एक प्रकृति का उदयबंध होते भी प्रकृति बदलने की अपेक्षा, वा सत्त्व दोय का वा एक का भी हो है, ताकी अपेक्षा गुणस्थान विषै सभवते भंगनि का वर्णन है । बहुरि गोत्र विषै नीचउच्च गोत्र के बंध, उदय, सत्त्व के बदलने की अपेक्षा गुणस्थाननि विषै सभवते भगनि का वर्णन है । बहुरि आयु विषै भोगभूमियां आदि जिस काल विषै आयुबध करें ताका, एकेद्रियादि जिस आयु कौ बाधै ताका, नारकादिकनि के प्रायु का उदय, सत्त्व संभव ताका, अर आठ अपकर्ष विषे बंधे ताका, तहा दूसरी, तीसरी बार आयुबध होने विषे घटने - बधने का, अर बध्यमान- भुज्यमान आयु के घटनेरूप अपवर्तनघात, कदलीघात का वर्णन करि बंध, प्रबंध, उपरितबंध की अपेक्षा गुणस्थाननि विषै संभवते भंगनि का वर्णन है । बहुरि वेदनीय, गोत्र, आयु इनके भंग मिथ्यादृष्ट्यादि विषे जेते - जेते संभवे, वा सर्व भग जेते जेते है तिनका वर्णन है । बहुरि मोह के स्थाननि की सत्त्वस्थान जैसे पाइए ताका वर्णन आधेय, तीन प्रकार, तहां जिस-जिस अपेक्षा भंग कहि गुणस्थाननि विषै बंध, उदय, करि मोह के त्रिसंयोग विषै एक आधार, दोय बंधस्थान विषै जो-जो उदयस्थान, वा
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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